ग्रामीण परिवेश का बदलता जीवन : सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिपेक्ष्य / Gramin Parivesh ka Badalta Jeevan: samajik, arthik evam rajneetik paripekshya edited by:जोधका, सुरिंदर एस. [Jodhka, Surinder S.]चौबे, कमाल नयन [Choubey, Kamal Nayan] सम्पादक सुरिन्दर एस जोधका, कमल नयन चौबे - नई दिल्ली : वाणी प्रकाशन और इकनॉमिक एण्ड पोलिटिकल वीकली, 2019 - 383p. - भारतीय ग्राम शृंखला - III .

Includes bibliographical references and index.

ग्रामीण भारत के जीवन के विविध आयामों से सम्बन्धित विद्वत्तापूर्ण और अनुसन्धानपरक आलेखों से बनी यह पुस्तक अपने आप में अनूठी है। इसका एक स्पष्ट कारण तो यह है कि इसमें भारत के गाँवों के जीवन के विविध आयामों से सम्बन्धित आलेख सम्मिलित हैं, और दूसरा कारण यह है कि यह पुस्तक स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन में गत्यात्मक परिवर्तनशीलता की तस्वीर प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक के अध्यायों को पढ़ते हुए हमें स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद के आरम्भिक दशकों में भारतीय गाँवों की स्थिति, जातियों की भूमिका और उनमें हो रहे परिवर्तन के बारे में जानकारी मिलती है। बाद के अध्यायों में साठ सत्तर और अस्सी के दशक में राज्य द्वारा निर्मित नीतियों के कारण ग्रामीण जीवन में होने वाले बदलावों का अनुभवसिद्ध अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इसी तरह कई अन्य अध्याय उदारीकरण और भूमण्डलीकरण के दौर में भारतीय गाँवों की दशा और दिशा को प्रदर्शित करते हैं। इस पुस्तक के संकलित आलेखों में ग्रामीण परिवेश का आधुनिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण, ग्रामीण स्त्रियों को आकांक्षाएँ एवं पुरुष संस्कृति, हाशिये की राजनीति एवं कृषि सम्बन्धी परिवर्तनों का पुनरावलोकन किया गया है।


Hindi.

9789389012859


ग्रामीण विकास--भारत.
ग्रामीण समाजशास्त्र--भारत.
सामाजिक परिवर्तन--ग्रामीण क्षेत्र--भारत.
आर्थिक स्थितियाँ--ग्रामीण क्षेत्र--भारत.
भारतीय गाँव --सामाजिक आर्थिक पहलू.

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