प्रशांत,आचार्य

मुक्ति: बंधन को बंधन तो जानो/ Mukti - नई दिल्ली, प्रभात प्रकाशन 2023 - 368p.

यहाँ पर मानव मन में 'मुक्ति' शब्द की आकर्षण की बात की गई है। मुक्ति का अर्थ, उसका महत्व और लोगों में इसके प्रति की आकर्षण की व्याख्या की गई है।
यहाँ पर बाह्य और आंतरिक बंधनों के बारे में चर्चा की गई है, और यह कैसे हमारी मुक्ति की तलाश में हमें प्रभावित करते हैं।
इस खंड में, बाह्य बंधनों से मुक्ति की अपूर्ण तलाश के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।
आचार्य प्रशांत के विचारों पर ध्यान दिया गया है, जिनमें बाह्य और आंतरिक बंधनों के महत्व को जानकर मुक्ति की तलाश की गई है।
यहाँ पर जीवन के उद्देश्य की चर्चा की गई है, जिसमें अपनी बेड़ियों को काटने के लिए हमें तैयार होने की महत्वपूर्णता को बताया गया है।
यहाँ पर भ्रमित जीवन के बारे में चर्चा की गई है, और इससे निकलने के लिए सत्य के साथ जीने के चुनाव के महत्व पर ध्यान दिया गया है।
इस खंड में, मुक्ति का सच्चा अर्थ और इसका महत्व बताया गया है, जो हमें अपनी अंतर्मुखी संवेदना के माध्यम से प्राप्त होता है।
यहाँ पर यह बताया गया है कि स्वभाव में ही मुक्ति का सत्य है, और हमें अपने स्वभाव को जानने और समझने की आवश्यकता है।
इस खंड में, मुक्त गगन में उड़ने के उद्देश्य की चर्चा की गई है, जो हमें अपनी स्वतंत्र और उन्नति भरी जीवन की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
इस खंड में, पुस्तक के मुख्य संदेश को सारांशित किया गया है, जो हमें स्वयं को अध्ययन करने और समझने के लिए प्रेरित करता है।


9789355210616


Self-help techniques
स्व-सहायता तकनीक
Social epistemology--Socialogy--India--knowledge theory social role
Phylosophy--Humanities--Ethics

123.5 / PRA-M