शंकर,रानी

दलित राजनीती और हिन्दू धर्म Dalit Rajneeti Aur Hindu Dharma - प्रभात प्रकाशन 2023

प्रस्तुत पुस्तक भारतरत्न बाबा साहेब आंबेडकर के कथन की पुष्टि करती है कि वंशानुगत आधार पर दलित व सवर्ण में कोई अंतर नहीं है एवं तार्किक व्याख्या करते हुए सिद्ध करती है कि शासकों ने जातिगत आधार पर हिंदू धर्म को विभाजित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने उच्चजाति में श्रेष्ठता का झूठा दंभ भरने की कोशिश की कि वे तो उन्हीं की भाँति भारतीय मूल के लोगों पर शासन करने के लिए यूरोप से आए और निचली जाति में यह हीन भावना भर दी कि वे न केवल गोरे शासकों से, बल्कि उच्चजाति के लोगों से भी हीन हैं। इस प्रकार उन्होंने शासक वर्ग के रूप में अपने और बहुसंख्यक आबादी के बीच एक और श्रेणी बनाने की चेष्टा की, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। यही कारण है कि दलित नेता भारत की आजादी के संघर्ष के लिए याद नहीं किए जाते हैं।
राजनीतिक मजबूरियों के कारण सरकारें देश में विभिन्न जातियों, धर्मों और क्षेत्रों के गरीबों एवं दलितों की दशा में सुधार का दिखावा करने के लिए सैकड़ों आयोगों का गठन और उनकी रिपोर्टों पर कार्य करती रहेंगी, लेकिन इसके वांछित परिणाम नहीं मिलने वाले। समस्या कहीं और है, समस्या भ्रष्टाचार है और यदि इसकी रोकथाम न की गई तो सभी प्रयास बेकार हैं।
इस पुस्तक का उद्देश्य दलित वर्ग को सैकड़ों वर्षों तक अपमानित एवं शोषित रखने के कारणों की तर्कसंगत समीक्षा करना है। राजनीति से प्रेरित कारण सच्चाई से कितनी दूर हैं, यह बात पाठक इस पुस्तक से जान सकेंगे।


Dalits-- Political activity --India--Social aspects
दलितों--राजनीतिक गतिविधि--भारत--सामाजिक पहलुओं

324.154 / SHA-R