भारत-चीन सीमा विवाद एक समस्या : (Record no. 37047)

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fixed length control field 11930nam a22001457a 4500
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number RK.0316
100 ## - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME
Personal name कुमार, अजय
Affiliation मेरठ कॉलेज
Place मेरठ
245 ## - TITLE STATEMENT
Title भारत-चीन सीमा विवाद एक समस्या :
Sub Title एक विश्लेषणात्मक अध्ययन /
Statement of responsibility, etc डॉ अजय कुमार
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication New Delhi :
Name of publisher/Sponsor Indian Council of social science research,
Year of publication 2014
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Number of Pages xxi, 167p.
Accompanying material includes summary
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc भारत और चीन के मध्य आदिकाल से ही आर्थिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध चलता आ रहा है किन्तु भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात्‌ और चीन में भी राष्ट्रवादी सरकार के पतन के बाद दोनों के मध्य विचारधारा में अन्तर होने के कारण कठटुता का प्रादुर्भाव हुआ | क्योंकि भारत की राजनैतिक आर्थिक और सामाजिक ढाँचा चीन की साम्यवादी शासन व्यवस्था और प्रणाली में पूर्णयया भिन्‍नता थी। भारत जहाँ शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व का पक्षधर है वही चीन की नीति आक्रमणकारी एवं विस्तारवादी है। इसके अतिरिक्त भारत पूरे एशिया महाद्वीप में चीन के समतुल्य ही जनसंख्या शक्ति और प्राकृतिक संसाधनों में चीन का प्रतिस्पर्धी बनने की क्षमता समेटे है वही चीन यह नहीं चाहता कि भारत उसका मुकाबला कर सकने की स्थिति में हो। भारत और चीन की सीमा 4057 किमी. तक फैली है जिन तीन सेक्टरों में चीन की सीना भारत से लगती है। वे पश्चिमी क्षेत्र लद्दाख मध्य क्षेत्र उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश तथा पूर्वी क्षेत्र अरूणाचल प्रदेश तथा सिक्किम। दोनों राष्ट्र सीमा को लेकर 4962 में युद्ध कर चुके है। जिसमें राजनैतिक नेतृत्व की कमजोरी तथा सैन्य स्तर पर रणनीति विखराव के कारण युद्ध में भारत को पराजय का सामना करना पड़ा, चीन ने भारत के जम्मू कश्मीर के लद॒दाख क्षेत्र में अक्साई चीन का 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अपने अवैध कब्जे में ले रखा है। इसके अतिरिक्त 4983 में पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर क्षेत्र में कराकोरम का 580 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन को उपहार स्वरूप प्रदान कर दिया। चीन भारतीय हितों को हानि पहुचाने के लिए ही गकिस्तान का प्रयोग करता आ रहा है और वह भारत को घेरन की नीति अपनाते हुए म्यांमार बांग्लादेश श्रीलंका सेशेल्स मालद्वीप आदि पड़ोसी राष्ट्रों में अपना प्रभाव पड़ा रहा है, जो कि भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से हानिकारक हो सकता है। विगत छ दशको के इतिहास से भारत-चीन सीमा विवाद एक ज्वलनशील मुद्दे बने हुए है क्योकि सीमा पर विवादस्पद गतिविधि होती रही, जिससे तनावपन एवं संकित परिस्थिति बनी रही। विवाद समय के साथ प्रतीकात्मक बनता नजर आ रहा है। यधपि दोनो रष्ट्रो ने अपने-अपने दावो पर स्थिर है। भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास की भारत चीनी से खोई एक-एक इंच भूमि वापस पुनः प्राप्त करेगा। ऐसी तरह चीन ने १९८४ में तवांग पर दावा इस आधार पर किया कि यह क्षेत्र छठे वें दलाई लामा का जन्म रथान है इस प्रकार यह तिब्बतीय बौद्ध धर्म का केन्द्र हैं। भारत चीन इन वर्षों में विवादों का समाधान निकालने का गम्भीर प्रयास नहीं किया,न ही एक सीमा से अधिक बढ़ने का प्रयास किया अर्थात शक्ति के प्रयोग से बचते रहें। भारत-चीन सीमा विवाद की सीधे रूपो में बिट्रिश नीति को तिब्बत वाया चीन फे रूप मे रखा जाना चाहिए। जब 1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया तो भारत का चीन से कोई संधि नहीं था जो सीमा की रेखाकिंत करता है। जबकि भारत तिब्बत के बीच था जो रीति रिवाज और परम्परा पर आधारित था।|चीन शुरू से ही तिब्बत के साथ हुई संधियो की वैधता एवं ऐतिहासिक साक्ष्यो पर प्रश्न उठाते रहे। इस प्रकार भारत-चीन सीमा औपचारिक रूप से रेखांकित नहीं है यह केवल दोनों राष्ट्रों के पार॑म्परिक रीति-रिवाजों की रेखा है जिसको रेखांकित करने की जरूरत है। चीन ने उस समय की भु-बनावट, प्रकृति दुर्गम को ध्यान में नही रखा। वह क्षेत्र आज भी वैसा है। इस प्रकार दोनों ही राष्ट्रो दो राष्ट्रो के बीच अर्न्तराष्ट्रीय रेखा देने में असफल रहे। इसी वजह से द्विपक्षीय वार्ता के लिए भारत-चीन सीमा को तीन सेक्टरो में विभाजित किया पश्चिम "पूर्व व मध्य सेक्टर | तीनों ही सेक्टरो का विवाद अपने आप में एक-दुसरे भिन्‍न है । वर्तमान स्थिति यह है कि पश्चिम सेक्टर में चीन ने अक्साई चीन (लगभग 33000 वर्ग कि0मी0) क्षेत्र पर कब्जा किये हुए है जबकि भारत का दावा ऐतिहासिक संधियो के आधार पर है परन्तु भारत प्रभावी न्याय करने में असफल रहा है। यह सत्य है कि भारत एक दशक तक चीनी सक्रियता से अनभिज्ञ थे। चीन अवसाई चीन 'में विकास कर अपने पहुँच को आसान बना दिया जबकि भारत अभी काफी दुर है। चीन अक्साई चीन में हाईवे बनाकर ल्हासा पश्चिगी से जोड़ दिया। यह केवल जावाहरिक मार्ग तिब्बत सिक्‍यांग, गोवी से उत्तर की है। भारत की तिब्बत के प्रति नीति उसके भू राजनीतिक। भू-स्त्रोतजिक और पूर्व के भू-आर्थिक महत्व को समझते हुए वर्तमान समय में एशिया में शक्ति संतुलन को बनाये रखें हुए है। भारत-चीन में तिब्बत एक महत्वपूर्ण कारक भारत-चीन की आन्तरिक सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्योकि बड़ी संख्या में तिब्बती भारत में शरण लिये हुए है। तिब्बत मामले को भी सुलझाने की जरूरत है ताकि तिब्बती वायस अपने घर जा सके। समय के साथ सीमा विवाद में नई परिधि गढ़े गये। वर्तमान समय में अधिकांश ग्राउन्ड वर्क हा चुके है। जो ॥988 में राजीव गॉधी की ऐतिहांसिक चीनी यात्रा से शुरू हुआ तथा जो 4962 के सम्बन्धो में जो बड़ी गैप था उसकी फिर से मित्रवत सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में आगे बढ़े उन्होंने अनुमत किया कि सीमा विवाद के समाधान के लिए दोनो राष्ट्रो के विचारों और पारस्परिक कितो एवं लाभो पर आधारित होना चाहिए। चीन का उत्तर संतोश जनक था ।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term Boundary disputes
Geographic subdivision India
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term National security
Geographic subdivision India
General subdivision Boundaries--Security measures
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
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Koha item type Research Reports
Holdings
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