000 -LEADER |
fixed length control field |
05718nam a22002417a 4500 |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER |
ISBN |
9789389243451 |
041 ## - LANGUAGE CODE |
Language code of text/sound track or separate title |
hin- |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER |
Classification number |
390 |
Item number |
UPA-L |
100 1# - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME |
Personal name |
उपाध्याय, कृष्णदेव |
Fuller form of name |
Upadhyay, Krishnadev |
Relator term |
लेखक. |
-- |
author. |
245 ## - TITLE STATEMENT |
Title |
लोक संस्कृति की रूपरेखा / |
Statement of responsibility, etc |
कृष्णदेव उपाध्याय |
246 ## - VARYING FORM OF TITLE |
Title proper/short title |
Lok Sanskriti ki Rooprekha |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) |
Place of publication |
प्रयागराज : |
Name of publisher |
लोकभारती प्रकाशन, |
Year of publication |
2019. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION |
Number of Pages |
324p. |
504 ## - BIBLIOGRAPHY, ETC. NOTE |
Bibliography, etc |
Includes bibliographical references and index. |
520 ## - SUMMARY, ETC. |
Summary, etc |
प्रस्तुत ग्रन्थ को छः खण्डों तथा 18 अध्यायों मे विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय में लोक संस्कृति शब्द के जन्म की कथा, इसका अर्थ, इसकी परिभाषा, सभ्यता और संस्कृति में अन्तर, लोक साहित्य तथा लोक संस्कृति में अन्तर हिन्दी में फोक लोर का समानर्थक शब्द लोक संस्कृति तथा लोक संस्कृति के विराद स्वरूप की मीमांसा की गयी है। द्वितीय अध्याय में लोक संस्कृति के अध्ययन का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। यूरोप के विभिन्न देशों जैसे जर्मनी, फ्रान्स, इंग्लैण्ड, स्वीडेन तथा फिनलैण्ड आदि में लोक साहित्य का अध्ययन किन विद्वानों के द्वारा किया गया, इसकी संक्षिप्त चर्चा की गयी है। द्वितीय खण्ड पूर्णतया लोक विश्वासों से सम्बन्धित है। अतः आकाश-लोक और भू- लोक में जितनी भी वस्तुयें उपलब्ध हैं और उनके सम्बन्ध में जो भी लोक विश्वास समाज में प्रचलित हैं उनका साङ्गोपाङ्ग विवेचन इस खण्ड में प्रस्तुत किया गया है। तीसरे खण्ड में सामाजिक संस्थाओं का वर्णन किया है जिसमें दो अध्याय हैं - ( 1 ) वर्ण और आश्रम (2) संस्कार। वर्ण के अन्तर्गत ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों के कर्त्तव्य, अधिकार तथा समाज में इनके स्थान का प्रतिपादन किया गया है। आश्रम वाले प्रकरण में चारों आश्रमों की चर्चा की गयी है। जातिप्रथा से होने वाले लाभ तथा हानियों की चर्चा के पश्चात् संयुक्त परिवार के सदस्यों के कत्तव्यों का परिचय दिया गया है। पंचम खण्ड में ललित कलाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इन कलाओं के अन्तगर्त संगीतकला, नृत्यकला, नाट्यकला, वास्तुकला, चित्रकला, मूर्तिकला आती है। संगीत लोक गीतों का प्राण है। इसके बिना लोक गीत निष्प्राण, निर्जीव तथा नीरस है। पष्ट तथा अन्तिम खण्ड में लोक साहित्य का समास रूप में विवेचन प्रस्तुत किया गया है। लोक साहित्य का पाँच श्रेणियों में विभाजन करके, प्रत्येक वर्ग की विशिष्टता दिखलायी गयी है। षष्ट तथा अन्तिम खण्ड में लोक साहित्य का समास रूप में विवेचन प्रस्तुत किया गया है। लोक साहित्य का पाँच श्रेणियों में विभाजन करके, प्रत्येक वर्ग की विशिष्टता दिखलायी गयी है। |
546 ## - LANGUAGE NOTE |
Language note |
Hindi. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
लोक साहित्य. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
लोक संस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
लोक साहित्य पर यूरोपीय दृष्टिकोण. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
लोक मान्यताएं और प्रथाएं. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
ब्रह्मांड विज्ञान और लोकगीत. |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) |
Source of classification or shelving scheme |
|
Koha item type |
Books |