000 -LEADER |
fixed length control field |
04372nam a2200217 4500 |
022 ## - INTERNATIONAL STANDARD SERIAL NUMBER |
ISSN |
9788126705832 |
041 ## - LANGUAGE CODE |
Language code of text/sound track or separate title |
hin- |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER |
Classification number |
891.2209 |
Item number |
DWI-N |
100 1# - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME |
Personal name |
द्विवेदी, हजारीप्रसाद |
Fuller form of name |
Dwivedi, Hajariprasad |
Relator term |
author |
245 10 - TITLE STATEMENT |
Title |
नाट्यशास्त्र की भारतीय परम्परा और दशरूपक / |
Statement of responsibility, etc |
हजारीप्रसाद द्विवेदी और पृथ्वीनाथ द्विवेदी |
246 ## - VARYING FORM OF TITLE |
Title proper/short title |
Natyashastra ki Bharatiya Parampara aur Dashroopak |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) |
Place of publication |
दिल्ली : |
Name of publisher |
राजकमल प्रकाशन, |
Year of publication |
2019. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION |
Number of Pages |
365 p. |
504 ## - BIBLIOGRAPHY, ETC. NOTE |
Bibliography, etc |
Includes bibliographical references and index. |
520 ## - SUMMARY, ETC. |
Summary, etc |
दशरूपक' के लेखक विष्णु-पुत्र धनंजय हैं जो मुंजराज (974-995 ई.) के सभासद थे। भरत के नाट्य शास्त्र को अति विस्तीर्ण समझकर उन्होंने इस ग्रन्थ में नाट्यशास्त्रीय उपयोगी बातों को संक्षिप्त करके कारिकाओं में यह ग्रन्थ लिखा। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश कारिकाएँ अनुष्टुप् छन्दों में लिखी गई हैं। संक्षेप में लिखने के कारण ये कारिकाएँ दुरूह भी हो गई थीं। इसीलिए उनके भाई धनिक ने कारिकाओं का अर्थ स्पष्ट करने के उद्देश्य से इस ग्रन्थ पर ' अवलोक' नामक वृत्ति लिखी। यह वृत्ति न होती तो धनंजय की कारिकाओं को समझना कठिन होता। इसलिए पूरा ग्रन्थ वृत्ति सहित कारिकाओं को ही समझना चाहिए। धनंजय और धनिक दोनों का ही महत्त्व है।<br/><br/>भरत मुनि के नाट्य-शास्त्र के बीसवें अध्याय को 'दशरूप-विकल्पन' (201) या 'दशरूप- विधान' कहा गया है। इसी आधार पर धनंजय ने अपने ग्रन्थ का नाम 'दशरूपक' दिया है। नाट्य- शास्त्र में जिन दस रूपकों का विधान है, उनमें हैं-नाटक, प्रकरण, अंक (उत्सृष्टिकांक), व्यायोग, भाण, समवकार, वीथी, प्रहसन, डिम और ईशामृग । एक ग्यारहवें रूपक 'नाटिका' की चर्चा भी भरत के नाट्य-शास्त्र और दशरूपक में आई है। परन्तु उसे स्वतंत्र रूपक नहीं माना गया है।<br/><br/>धनंजय ने भरत का अनुसरण करते हुए नाटिका का उल्लेख तो कर दिया है पर उसे स्वतंत्र रूपक नहीं माना। इस पुस्तक में धनंजय कृत कारिकाओं के अलावा धनिक की वृत्ति तथा नाट्यशास्त्र की भारतीय परम्परा का परिचय देने के लिए आचार्य द्विवेदी ने अपना एक निबन्ध भी जोड़ा है। |
546 ## - LANGUAGE NOTE |
Language note |
Hindi. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
संस्कृत नाटक |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
संस्कृत नाटक इतिहास और आलोचना. |
700 1# - ADDED ENTRY--PERSONAL NAME |
Personal name |
द्विवेदी, पृथ्वीनाथ |
Relator term |
author |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) |
Source of classification or shelving scheme |
|
Koha item type |
Books |