पाश्चात्य दर्शन और सामाजिक अन्तराविरोध : (Record no. 38419)

000 -LEADER
fixed length control field 05060nam a2200253 4500
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
ISBN 9788126703074
041 ## - LANGUAGE CODE
Language code of text/sound track or separate title hin-
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 100
Item number SHA-P
100 1# - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME
Personal name शर्मा, रामविलास
Fuller form of name Sharma, Ramvilas
Relator term लेखक.
-- author.
245 10 - TITLE STATEMENT
Title पाश्चात्य दर्शन और सामाजिक अन्तराविरोध :
Sub Title थलेस से मार्क्स तक /
Statement of responsibility, etc रामविलास शर्मा
246 ## - VARYING FORM OF TITLE
Title proper/short title paashchaaty darshan aur saamaajik antaraavirodh
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication दिल्ली :
Name of publisher राजकमल प्रकाशन,
Year of publication 2016.
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Number of Pages 360p.
504 ## - BIBLIOGRAPHY, ETC. NOTE
Bibliography, etc Includes bibliographical references and index.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc यह पुस्तक लगभग ढाई हजार साल में फैले पाश्चात्य दर्शन के इतिहास को समेटती है। किन्तु उक्त ऐतिहासिक विकासक्रम का सिलसिलेवार अध्ययन करना इसका उद्देश्य नहीं है। इस लिहाज से देखें तो यह ध्यान में रखना होगा कि रामविलासजी उन इतिहासकारों में से नहीं थे, जो आँकड़ों को अतिरिक्त महत्त्व देते हैं। दर्शन के इतिहास से सम्बन्धित अनिर्णीत विवादों की विवेचना के लक्ष्य के मद्देनजर रामविलासजी अपनी मान्यता प्रस्तुत करने में किसी दुविधा या हिचक का अनुभव नहीं करते । भाषाविज्ञान, पुरातत्त्व, इतिहास, समाजशास्त्र और साहित्य के अद्यतन ज्ञान से लैस होने तथा चिन्तन की द्वन्द्वात्मक पद्धति के सटीक विनियोग के परिणामस्वरूप उनके निष्कर्ष वैचारिक उत्तेजना तो पैदा करते ही हैं, रोचक और ज्ञानवर्द्धक भी होते हैं। मानव-सभ्यता के विकास के क्रम में दर्शन का उद्भव और विकास कैसे हुआ ? क्या यूनानी दर्शन के उद्भव के मूल में मिस्र, बेबिलोन, भारत, चीन, आदि का भी योगदान था ? समाज की ठोस अवस्थाओं के सापेक्ष सन्दर्भ के बिना क्या किसी दार्शनिक चिन्तन, किसी दार्शनिक धारा अथवा अवधारणाओं का अभिप्राय समुचित ढंग से समझा जा सकता है ? इन प्रश्नों के अतिरिक्त, दर्शन को ज्ञान की अन्य शाखाओं और अनुशासनों के साथ किस प्रकार समझा जा सकता है, इस दृष्टि से भी पाश्चात्य दर्शन पर रामविलासजी का लेखन सार्थक और मूल्यवान है। यूनानी दर्शन, रिनासां काल के चिन्तन, दार्शनिक प्रतिपत्तियों पर सामाजिक अन्तर्विरोध के प्रभाव, अधिरचना और बुनियाद के जटिल अन्तर्सम्बन्ध, एशिया - अफ्रीका की सभ्यता के प्रति पश्चिमी दृष्टि के पूर्वग्रह, आदि पर रामविलासजी दो टूक ढंग से अपनी बात कहते हैं। हिन्दीभाषी लोगों के लिए यह पुस्तक दर्शन सम्बन्धी जरूरी ज्ञान का एक सुग्राह्य संचयन है।
546 ## - LANGUAGE NOTE
Language note Hindi.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term दर्शन, पश्चिमी.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term सामाजिक विरोधाभास.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term थेल्स.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term मार्क्स, कार्ल.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term दर्शनशास्त्र का इतिहास.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term भाषा विज्ञान.
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Source of classification or shelving scheme
Koha item type Books
Holdings
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