1984 दिल्ली में शिखो पर हुए हमलो की रियल स्टोरी/ (Record no. 38845)
[ view plain ]
000 -LEADER | |
---|---|
fixed length control field | 04073nam a22001817a 4500 |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
ISBN | 9789355219305 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 954.04 |
Item number | SUR-D |
100 ## - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME | |
Personal name | सूरी, संजय |
Relator term | author |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | 1984 दिल्ली में शिखो पर हुए हमलो की रियल स्टोरी/ |
Statement of responsibility, etc | संजय सूरी |
246 ## - VARYING FORM OF TITLE | |
Title proper/short title | 1948: Dilli mein sikhon par huye hamlon ki real story |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Place of publication | नई दिल्ली: |
Name of publisher | प्रभात प्रकाशन, |
Year of publication | 2023. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Number of Pages | 294p. |
Accompanying material | 22cm |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc | संजय सूरी नई दिल्ली में 'द इंडियन एक्सप्रेस' अखबार के एक युवा क्राइम रिपोर्टर थे, जब 31 अक्तूबर, 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी। वह उन चुनिंदा पत्रकारों में शामिल थे, जिन्होंने उसके बाद हुई उस भयंकर और बेकाबू सिख-विरोधी हिंसा को देखा था, जबकि पुलिस ने आँखें बंद कर ली थीं। उन्होंने देखा था, कैसे कांग्रेस के कार्यकर्ता लूट के आरोप में गिरफ्तार एक कांग्रेसी सांसद को रिहा करने की माँग कर रहे थे। रिपोर्टिंग के दौरान वह हत्यारों के गैंग से बाल-बाल बच गए थे। बाद में उन्होंने हलफनामा दायर किया, जिसमें कांग्रेस के दो सांसदों से संबंधित उनकी आँखोंदेखी गवाही शामिल थी, और एक चुनावी रैली में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सीधा सवाल किया था। नरसंहार की जाँच के लिए गठित कई जाँच आयोगों के सामने भी सूरी ने गवाही दी, हालाँकि उनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। इस पुस्तक में वह अपने अनुभवों और उस समय अग्रिम मोर्चे पर हिंसा का सामना करनेवाले पुलिस अधिकारियों के व्यापक साक्षात्कारों से हुए ताजा खुलासों का खजाना लेकर आए हैं। सिख विरोधी हिंसा और क्रूरता के पीछे कांग्रेस का हाथ होने के सवाल की यह गहरी छानबीन करती है कि क्यों तीस साल बाद भी जीवित बचे लोगों को न्याय की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। यह पुस्तक झकझोर देनेवाली घटनाओं का वर्णन विशिष्ट रिपोर्ताज और मर्मस्पर्शी कहानियों को जोड़कर करती है, जो आज भी हमें उतनी ही पीड़ा और वेदना का अनुभव कराती हैं। |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | Sikh Massacre |
Form subdivision | 1984 |
Geographic subdivision | India |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | Anti-Sikh Riots |
Form subdivision | Massacres |
Geographic subdivision | India |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | सिख नरसंहार |
Form subdivision | 1984 |
Geographic subdivision | भारत |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | |
Koha item type | Books |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Permanent Location | Current Location | Date acquired | Source of acquisition | Cost, normal purchase price | Full call number | Accession Number | Cost, replacement price | Price effective from | Koha item type |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
NASSDOC Library | NASSDOC Library | 2024-04-12 | 9 | 324.90 | 954.04 SUR-D | 53996 | 450.00 | 2024-04-12 | Books |