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गौंड जनजीवन और संस्कृति

By: करचाम, तुलसी Karcham, Tulsi.
Publisher: New Delhi Synergy Books India, 2018Description: viii, 257p.ISBN: 9789382059547.Other title: Gond Jasnjeevan aur sanskriti.Subject(s): Lifestyle -- Culture -- Social lifestyleDDC classification: 306.42 Summary: िेश के सभी राज्यों में गोंड जनजातत तनवास कर रही है । प्रस्तुत पुस्तक म प्र के पूवाांचल तडण्डोरी एवं मंडला तजले की गोंड जनजातत की संस्कृतत के सन्िभभ में तलखी गई है । जनजातत या आदिवासी शब्ि अपने में असीम अनुपम और अद्बुध इततहास संजोये हुए है । इस शब्ि का उच्चारण करतेही पुरातन जाततयों की एक जलक सामने आ जाती है । आदिवासी अतीत के प्रतततनतध एवं िेश के तलए तिपे हुए िारोहर है । आतधनुक युग की चकाचौंध से िूर आतधनुकता की कृततम एवं जटिल व्यवहार शैली से अलग तथा आज के भौततक वैभव एवं भोगवािी जीवन से अपटरतचत आकंठ एवं शांत वातावरण मेंप्रकर्तभ की गोि में रहने वाली गोंड जनजातत के लोग आज भी अपनी प्रथाओं और परम्परावो से युक्त अपनी मयाभिा और संस्कारो से पुष्ट सामातजकता का पटरचय िेते है । इन आदिवातसयों के जीवन मूल्य और परम्पराओ पर तसहांवलोकन करने के तलए भलेही उनम आधुतनक तवकाश पटरलतित नहीं होता दकन्तु ऐसा प्रतीत होता हैकी तथाकतथत तवकाश की तवकृततयों सेयह सवभथा मुक्त है । सािरता की आहात कमजोर भले ही हो लेदकन अनुभव की तवराि सम्पिा उनके पास है । इसतलए वे तपिड़ेपन केनहीं नैसर्गभक पतवत्रता के प्रततक है । सहज मानवीयता सरल जीवन उनकी सम्पिा है ।
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हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह 306.42 KAR-G (Browse shelf) Available हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह 50170

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िेश के सभी राज्यों में गोंड जनजातत तनवास कर रही है । प्रस्तुत पुस्तक म प्र के पूवाांचल तडण्डोरी एवं मंडला तजले की गोंड जनजातत की संस्कृतत के सन्िभभ में तलखी गई है । जनजातत या आदिवासी शब्ि अपने में असीम अनुपम और अद्बुध इततहास संजोये हुए है । इस शब्ि का उच्चारण करतेही पुरातन जाततयों की एक जलक सामने आ जाती है । आदिवासी अतीत के प्रतततनतध एवं िेश के तलए तिपे हुए िारोहर है । आतधनुक युग की चकाचौंध से िूर आतधनुकता की कृततम एवं जटिल व्यवहार शैली से अलग तथा आज के भौततक वैभव एवं भोगवािी जीवन से अपटरतचत आकंठ एवं शांत वातावरण मेंप्रकर्तभ की गोि में रहने वाली गोंड जनजातत के लोग आज भी अपनी प्रथाओं और परम्परावो से युक्त अपनी मयाभिा और संस्कारो से पुष्ट सामातजकता का पटरचय िेते है । इन आदिवातसयों के जीवन मूल्य और परम्पराओ पर तसहांवलोकन करने के तलए भलेही उनम आधुतनक तवकाश पटरलतित नहीं होता दकन्तु ऐसा प्रतीत होता हैकी तथाकतथत तवकाश की तवकृततयों सेयह सवभथा मुक्त है । सािरता की आहात कमजोर भले ही हो लेदकन अनुभव की तवराि सम्पिा उनके पास है । इसतलए वे तपिड़ेपन केनहीं नैसर्गभक पतवत्रता के प्रततक है । सहज मानवीयता सरल जीवन उनकी सम्पिा है ।

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