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Effect of Television on Urban and Rural Womens (A sociological studyof working and non working women) / Sudha Bhatnagar

By: Bhatnagar, Sudha.
Publisher: New Delhi : ICSSR, 2014Description: 108p.Subject(s): Television -- Telecommunication | Womens Rural and urban -- Sociological Aspects -- SociologyDDC classification: RB.0329 Summary: युग तेजी से बदल रहा है उसके मानदण्डों में जिस रफ्तार से परिवर्तनहो रहा है और जिस प्रभावी गति से विज्ञान की उपलब्धियाँ सामने आ रही है, उससे लगता है कि बहुत सी बाते, जो कल संभव नहीं थी अब संभव हो जायेगी। पिछले वर्षो में प्रचार प्रसार के माध्यम स्वरुप रेडियो का विकास तो हुआ ही है, टेलीविजन का भी इस ओर महत्व बढ़ गया है बीसवीं शताब्दी से पूर्व किसी खबर को प्रसारित करने का कार्य जिन पद्दतियों से किया जाता था, वे आज अनुपयुकत और अप्रभावी लगने लगी है। आज की परिवर्तित परिस्थिति ने प्रचार प्रसार के माध्यम भी बदल गये है। इस शोध अध्ययन की समस्या में प्रचार-प्रसार के माध्यम में टेलीविजन के प्रभाव को नगरीय व ग्रामीण समुदाय की कार्यरत और अकार्यरत महिलाओं पर देखा है। प्रस्तुत शोध को पांच अध्याय में विभकक्‍त किया जाता है। प्रथम अध्याय समस्या से सबंधित विभिन्‍न अवधारणाओं के स्पष्टीकरण से सबंधित है। इस अध्याय में इन विभिन्‍न अवधारणाओं को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है जिसमें संचार को विभिन्‍न समाजशास्त्री जैसे रोजर और शूमेकर, बट्रेण्ड,जनादन आदि द्वारा परिभाषित किया गया है। और संचार के विभिन्‍न प्रकारों को बताया गया है इसके पश्चात्‌ जनसचार को का अर्थ बताते हुए इसकी परिभाषाएं दी गई है जिसमें लुण्डबर्ग, श्रेग और लारसन जनादन, ओटो एन. लारसन आदि मुख्य है। इसके पश्चात्‌ जनसंचार की विशेषताओं, जनसंचार ह भूमिका, जनसंचार की प्रक्रिया, जनसंचार के तत्त्व, विभिन्‍न जनसंचारयम, जनसंचार माध्यम का महित्व आदि को स्पष्ट किया गया है। इन्हीं के _ भाज >लंगसेवरे के विभिन्‍न सिद्धान्त जिसमें विलियम स्टेफेन्सन का “खेल बी का “हाइपर रियलिटी”, मार्शल मैकलुहान का “माध्यम है”, को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है। ही संदेश जनसंचार से संबंधित अवधारणाओं के बाद शोध में प्रयुक्त विभिन्‍न अन्य अवधारणाएं जैसे कार्यरत महिलाओं और अकार्यरत महिलाओं को
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युग तेजी से बदल रहा है उसके मानदण्डों में जिस रफ्तार से परिवर्तनहो रहा है और जिस प्रभावी गति से विज्ञान की उपलब्धियाँ सामने आ रही है, उससे लगता है कि बहुत सी बाते, जो कल संभव नहीं थी अब संभव हो जायेगी। पिछले वर्षो में प्रचार प्रसार के माध्यम स्वरुप रेडियो का विकास तो हुआ ही है, टेलीविजन का भी इस ओर महत्व बढ़ गया है बीसवीं शताब्दी से पूर्व किसी खबर को प्रसारित करने का कार्य जिन पद्दतियों से किया जाता था, वे आज अनुपयुकत और अप्रभावी लगने लगी है। आज की परिवर्तित परिस्थिति ने प्रचार प्रसार के माध्यम भी बदल गये है। इस शोध अध्ययन की समस्या में प्रचार-प्रसार के माध्यम में टेलीविजन के प्रभाव को नगरीय व ग्रामीण समुदाय की कार्यरत और अकार्यरत महिलाओं पर देखा है। प्रस्तुत शोध को पांच अध्याय में विभकक्‍त किया जाता है। प्रथम अध्याय समस्या से सबंधित विभिन्‍न अवधारणाओं के स्पष्टीकरण से सबंधित है। इस अध्याय में इन विभिन्‍न अवधारणाओं को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है जिसमें संचार को विभिन्‍न समाजशास्त्री जैसे रोजर और शूमेकर, बट्रेण्ड,जनादन आदि द्वारा परिभाषित किया गया है। और संचार के विभिन्‍न प्रकारों को बताया गया है इसके पश्चात्‌ जनसचार को का अर्थ बताते हुए इसकी परिभाषाएं दी गई है जिसमें लुण्डबर्ग, श्रेग और लारसन जनादन, ओटो एन. लारसन आदि मुख्य है। इसके पश्चात्‌ जनसंचार की विशेषताओं, जनसंचार ह भूमिका, जनसंचार की प्रक्रिया, जनसंचार के तत्त्व, विभिन्‍न जनसंचारयम, जनसंचार माध्यम का महित्व आदि को स्पष्ट किया गया है। इन्हीं के _ भाज >लंगसेवरे के विभिन्‍न सिद्धान्त जिसमें विलियम स्टेफेन्सन का “खेल बी का “हाइपर रियलिटी”, मार्शल मैकलुहान का “माध्यम है”, को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है। ही संदेश जनसंचार से संबंधित अवधारणाओं के बाद शोध में प्रयुक्त विभिन्‍न अन्य अवधारणाएं जैसे कार्यरत महिलाओं और अकार्यरत महिलाओं को

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