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भारतीय ग्राम / श्यामाचरण दुबे

By: दुबे, श्यामाचरण Dubey, Shyamacharan [लेखक., author.].
Publisher: नई दिल्ली : वाणी प्रकाशन, 2017Description: 240p.ISBN: 9789352296965.Other title: Bhartiya Gram.Subject(s): ग्रामीण विकास -- भारत | सामाजिक परिवर्तन -- भारत | ग्रामीण समुदाय -- भारत | ग्राम समुदाय -- भारत | ग्रामीण समाजशास्त्र -- भारत | ग्रामीण जीवन -- भारतDDC classification: 301.3509549182 Summary: भारत के ग्राम समुदायों में तेजी से सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। सन 1947 में स्वतंत्रता हैं मिलने के बाद से आधुनिकीकरण की दिशा में देश ने महत्त्वपूर्ण चरण उठाए । बहु-उद्देशीय नदी घाटी योजनाएँ, कृषि को यंत्रीकृत करने की योजनाएँ और नये उद्योगों को विकसित करने के कार्यक्रम सम्बन्धी कई राष्ट्रीय योजनाएँ कार्यान्वित हुई जिन्होंने कुछ ही दशाब्दियों में ग्रामीण भारत का स्वरूप बदल दिया। भारतीय ग्राम समुदायों के परम्परागत जीवन और उनमें दीख पड़ने वाली सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्तियों का अध्ययन न केवल समाज के अध्येताओं के लिए, वरन् योजनाकारों, प्रशासकों और उन सबके लिए जिनकी मानव कल्याण और सामाजिक परिवर्तन में रुचि है, महत्त्व का है। यह पुस्तक एक भारतीय ग्राम की सामाजिक संरचना और जीवन-विधि का वर्णन प्रस्तुत करती है। भारत के ग्राम-जीवन के प्रथम समुदाय-अध्ययनों में से एक, यह अध्ययन विख्यात सामाजिक मानव-वैज्ञानिक प्रोफेसर श्यामाचरण दुबे द्वारा एक शोध दल की सहायता से सम्पन्न किया गया। यह विस्तार से जटिल जाति-व्यवस्था का वर्णन प्रस्तुत करती है और यह दर्शाती है कि किस प्रकार विभिन्न जातियाँ ग्राम समुदाय के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन में एक-दूसरे से जुड़ी हैं। इसमें लोगों के बदलते हुए विचारों और अभिवृत्तियों का विश्लेषण किया गया है और सामाजिक, आर्थिक परिवर्तन की प्रवृत्तियों का भी गूढ़ परीक्षण किया गया है।
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अनुवादक: योगेश अटल

संदर्भ ग्रंथ

भारत के ग्राम समुदायों में तेजी से सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। सन 1947 में स्वतंत्रता हैं मिलने के बाद से आधुनिकीकरण की दिशा में देश ने महत्त्वपूर्ण चरण उठाए । बहु-उद्देशीय नदी घाटी योजनाएँ, कृषि को यंत्रीकृत करने की योजनाएँ और नये उद्योगों को विकसित करने के कार्यक्रम सम्बन्धी कई राष्ट्रीय योजनाएँ कार्यान्वित हुई जिन्होंने कुछ ही दशाब्दियों में ग्रामीण भारत का स्वरूप बदल दिया। भारतीय ग्राम समुदायों के परम्परागत जीवन और उनमें दीख पड़ने वाली सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्तियों का अध्ययन न केवल समाज के अध्येताओं के लिए, वरन् योजनाकारों, प्रशासकों और उन सबके लिए जिनकी मानव कल्याण और सामाजिक परिवर्तन में रुचि है, महत्त्व का है। यह पुस्तक एक भारतीय ग्राम की सामाजिक संरचना और जीवन-विधि का वर्णन प्रस्तुत करती है। भारत के ग्राम-जीवन के प्रथम समुदाय-अध्ययनों में से एक, यह अध्ययन विख्यात सामाजिक मानव-वैज्ञानिक प्रोफेसर श्यामाचरण दुबे द्वारा एक शोध दल की सहायता से सम्पन्न किया गया। यह विस्तार से जटिल जाति-व्यवस्था का वर्णन प्रस्तुत करती है और यह दर्शाती है कि किस प्रकार विभिन्न जातियाँ ग्राम समुदाय के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन में एक-दूसरे से जुड़ी हैं। इसमें लोगों के बदलते हुए विचारों और अभिवृत्तियों का विश्लेषण किया गया है और सामाजिक, आर्थिक परिवर्तन की प्रवृत्तियों का भी गूढ़ परीक्षण किया गया है।

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