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आधुनिक भारत में जाति / एम. एन. श्रीनिवास

By: श्रीनिवास, एम. एन [लेखक., author .].
Publisher: दिल्ली : राजकमल प्रकाशन, 2020Description: 180p.ISBN: 9788126701254 .Subject(s): जाति व्यवस्था -- भारत | सामाजिक वर्ग -- भारत | सामाजिक असमानता -- भारतDDC classification: 305.8954 Summary: अथक अध्ययन और शोध के परिणामस्वरूप एम. एन. श्रीनिवास के निबन्ध आकार ग्रहण करते हैं। भारतीय समाज की नब्ज पर उनकी पकड़ गहरी और मजबूत है। उनके लेखन में इतिहास और बुद्धि का बोझिलपन नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में संगृहीत निबन्धों में समाजशास्त्र व नृतत्त्वशास्त्र विषयक समस्याओं के व्यावहारिक पक्षों पर रोशनी डाली गई है। लेखक समस्याओं की तह में जाना पसन्द करता है और उसके विश्लेषण का आधार भी यही है। हर समाज की अपनी मौलिक संरचना होती है। जिस संरचना को उस समाज के लोग देखते हैं, वह वैसी नहीं होती जैसी समाजशास्त्री शोध और अनुमानों के आधार पर प्रस्तुत करते हैं। भारतीय समाजशास्त्रियों ने जाति-व्यवस्था के जटिल तथ्यों को 'वर्ग' की मर्यादाओं में समझने की भूल की और जिसके चलते सामाजिक संरचना का अध्ययन सतही हो गया। गत सौ-डेढ़ सौ वर्षों के दौरान जाति-व्यवस्था का असर कई नए-नए कार्यक्षेत्रों में विस्तृत हुआ है और उसकी ऐतिहासिक व मौजूदा तंत्र की नितान्त नए दृष्टिकोण से विश्लेषण करने की माँग एम. एन. श्रीनिवास करते हैं। हमारे यहाँ जाति-व्यवस्था की जड़ें इतनी गहरी हैं कि बिना इसके सापेक्ष परिकलन किए मूल समस्याओं की बात करना बेमानी है। एम.एन. श्रीनिवास का मानना है कि समाज- वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए राजनीतिक स्तर के जातिवाद तथा सामाजिक एवं कर्मकांडी स्तर के जातिवाद में फर्क करना जरूरी है।
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अथक अध्ययन और शोध के परिणामस्वरूप एम. एन. श्रीनिवास के निबन्ध आकार ग्रहण करते हैं। भारतीय समाज की नब्ज पर उनकी पकड़ गहरी और मजबूत है। उनके लेखन में इतिहास और बुद्धि का बोझिलपन नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में संगृहीत निबन्धों में समाजशास्त्र व नृतत्त्वशास्त्र विषयक समस्याओं के व्यावहारिक पक्षों पर रोशनी डाली गई है। लेखक समस्याओं की तह में जाना पसन्द करता है और उसके विश्लेषण का आधार भी यही है।

हर समाज की अपनी मौलिक संरचना होती है। जिस संरचना को उस समाज के लोग देखते हैं, वह वैसी नहीं होती जैसी समाजशास्त्री शोध और अनुमानों के आधार पर प्रस्तुत करते हैं। भारतीय समाजशास्त्रियों ने जाति-व्यवस्था के जटिल तथ्यों को 'वर्ग' की मर्यादाओं में समझने की भूल की और जिसके चलते सामाजिक संरचना का अध्ययन सतही हो गया। गत सौ-डेढ़ सौ वर्षों के दौरान जाति-व्यवस्था का असर कई नए-नए कार्यक्षेत्रों में विस्तृत हुआ है और उसकी ऐतिहासिक व मौजूदा तंत्र की नितान्त नए दृष्टिकोण से विश्लेषण करने की माँग एम. एन. श्रीनिवास करते हैं। हमारे यहाँ जाति-व्यवस्था की जड़ें इतनी गहरी हैं कि बिना इसके सापेक्ष परिकलन किए मूल समस्याओं की बात करना बेमानी है। एम.एन. श्रीनिवास का मानना है कि समाज- वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए राजनीतिक स्तर के जातिवाद तथा सामाजिक एवं कर्मकांडी स्तर के जातिवाद में फर्क करना जरूरी है।

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