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पटरंगपुर पुराण / मृणाल पाण्डे

By: पाण्डे, मृणाल Pande, Mrunal [लेखक., author.].
Publisher: दिल्ली : राधाकृष्ण, 2014Description: 164p.ISBN: 9788171190652.Other title: Patrangpur Puran.Subject(s): हिन्दी कथाDDC classification: 891.43371 Summary: रचनात्मक गद्य की गहराई और पत्रकारिता की संप्रेषणीयता से समृद्ध मृणाल पांडे की कथाकृतियाँ हिन्दी जगत में अपने अलग तेवर के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाओं में कथा का प्रवाह और शैली उनका कथ्य स्वयं बुनता है। 'पटरंगपुर पुराण' के केंद्र में पटरंगपुर नाम का एक गाँव है जो बाद में एक कस्बे में तब्दील हो जाता है। इसी गाँव के विकास-क्रम के साथ चलते हुए यह उपन्यास कुमायूँ-गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र के जीवन में पीढ़ी-दर-पीढ़ी आए बदलाव का अंकन करता है । कथा-रस का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए इसमें काली कुमायूँ के राजा से लेकर भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति तक के समय को लिया गया है । परिनिष्ठित हिन्दी के साथ-साथ पहाड़ी शब्दों और कथन- शैलियों का उपयोग इस उपन्यास को विशेष रूप से आकर्षक बनाता है, इसे पढ़ते हुए हम न केवल सम्बन्धित क्षेत्र के लोक-प्रचलित इतिहास से अवगत होते हैं, बल्कि भाषा के माध्यम से वहाँ का जीवन भी अपनी तमाम सांस्कृतिक और सामाजिक भंगिमाओं के साथ हमारे सामने साकार हो उठता है। कहानियों-किस्सों की चलती-फिरती खान विष्णुकुटी की आमा की बोली में उतरी ये कथा सचमुच एक पुराण जैसी ही ठहरी ।
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891.43371 PAN-P (Browse shelf) Available 53420

includes bibliographical references and index.

रचनात्मक गद्य की गहराई और पत्रकारिता की संप्रेषणीयता से समृद्ध मृणाल पांडे की कथाकृतियाँ हिन्दी जगत में अपने अलग तेवर के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाओं में कथा का प्रवाह और शैली उनका कथ्य स्वयं बुनता है। 'पटरंगपुर पुराण' के केंद्र में पटरंगपुर नाम का एक गाँव है जो बाद में एक कस्बे में तब्दील हो जाता है। इसी गाँव के विकास-क्रम के साथ चलते हुए यह उपन्यास कुमायूँ-गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र के जीवन में पीढ़ी-दर-पीढ़ी आए बदलाव का अंकन करता है । कथा-रस का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए इसमें काली कुमायूँ के राजा से लेकर भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति तक के समय को लिया गया है । परिनिष्ठित हिन्दी के साथ-साथ पहाड़ी शब्दों और कथन- शैलियों का उपयोग इस उपन्यास को विशेष रूप से आकर्षक बनाता है, इसे पढ़ते हुए हम न केवल सम्बन्धित क्षेत्र के लोक-प्रचलित इतिहास से अवगत होते हैं, बल्कि भाषा के माध्यम से वहाँ का जीवन भी अपनी तमाम सांस्कृतिक और सामाजिक भंगिमाओं के साथ हमारे सामने साकार हो उठता है। कहानियों-किस्सों की चलती-फिरती खान विष्णुकुटी की आमा की बोली में उतरी ये कथा सचमुच एक पुराण जैसी ही ठहरी ।

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