महाभोज / मन्नू भंडारी
By: भंडारी, मन्नू Bhandari, Mannu [लेखक., author.].
Publisher: दिल्ली : राधाकृष्ण प्रकाशन, 2022Description: 168p.ISBN: 9788171198399.Other title: Mahabhoj.Subject(s): हिंदी कथा साहित्य | हिंदी नाटक | शिष्टाचार और रीति-रिवाज | राजनीतिक भ्रष्टाचार | भारत | राजनीति और सरकारDDC classification: 891.4327 Summary: मन्नू भंडारी का महाभोज उपन्यास इस धारणा को तोड़ता है कि महिलाएँ या तो घर-परिवार के बारे में लिखती हैं, या अपनी भावनाओं की दुनिया में ही जीती मरती हैं। महाभोज विद्रोह का राजनैतिक उपन्यास है। जनतंत्र में साधारण जन की जगह कहाँ है? राजनीति और नौकरशाही के सूत्रधारों ने सारे ताने-बाने को इस तरह उलझा दिया है कि वह जनता को फाँसने और घोटने का जाल बनकर रह गया है। इस जाल की हर कड़ी महाभोज के दा साहब की उँगलियों के इशारों पर सिमटती और खुलती है। हर सूत्र के वे कुशल संचालक हैं। उनकी सरपरस्ती में राजनीति के खोटे सिक्के समाज चला रहे हैं-खरे सिक्के एक तरफ़ फेंक दिए गए हैं। महाभोज उपन्यास भ्रष्ट भारतीय राजनीति के नग्न यथार्थ को प्रस्तुत करता है। अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में इस महत्वपूर्ण उपन्यास के अनुवाद हुए हैं और महाभोज नाटक तो दर्जनों भाषाओं में सैकड़ों बार मंचित होता रहा है। 'नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा' (दिल्ली) द्वारा मंचित महाभोज नाटक राष्ट्रीय नाट्य मंडल की गौरवशाली प्रस्तुतियों में अविस्मरणीय है। हिन्दी के सजग पाठक के लिए अनिवार्य उपन्यास है महाभोज ।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|
![]() |
NASSDOC Library | 891.4327 BHA-M (Browse shelf) | Available | 53415 |
Browsing NASSDOC Library Shelves Close shelf browser
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
891.43 YAD-S शह और मात : | 891.431 विद्यापति के गीत/ | 891.4317 BHA- भवानीप्रसाद मिश्र संचयन / | 891.4327 BHA-M महाभोज / | 891.433 RAN-G ग्लोबल गाँव के देवता / | 891.433 SHI-C चल खुसरो घर आपने / | 891.433 SHI-K कालिंदी / |
Includes bibliographical references and index.
मन्नू भंडारी का महाभोज उपन्यास इस धारणा को तोड़ता है कि महिलाएँ या तो घर-परिवार के बारे में लिखती हैं, या अपनी भावनाओं की दुनिया में ही जीती मरती हैं। महाभोज विद्रोह का राजनैतिक उपन्यास है। जनतंत्र में साधारण जन की जगह कहाँ है? राजनीति और नौकरशाही के सूत्रधारों ने सारे ताने-बाने को इस तरह उलझा दिया है कि वह जनता को फाँसने और घोटने का जाल बनकर रह गया है। इस जाल की हर कड़ी महाभोज के दा साहब की उँगलियों के इशारों पर सिमटती और खुलती है। हर सूत्र के वे कुशल संचालक हैं। उनकी सरपरस्ती में राजनीति के खोटे सिक्के समाज चला रहे हैं-खरे सिक्के एक तरफ़ फेंक दिए गए हैं। महाभोज उपन्यास भ्रष्ट भारतीय राजनीति के नग्न यथार्थ को प्रस्तुत करता है। अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में इस महत्वपूर्ण उपन्यास के अनुवाद हुए हैं और महाभोज नाटक तो दर्जनों भाषाओं में सैकड़ों बार मंचित होता रहा है। 'नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा' (दिल्ली) द्वारा मंचित महाभोज नाटक राष्ट्रीय नाट्य मंडल की गौरवशाली प्रस्तुतियों में अविस्मरणीय है। हिन्दी के सजग पाठक के लिए अनिवार्य उपन्यास है महाभोज ।
Hindi.
There are no comments for this item.