लोकसंस्कृति में राष्ट्रवाद / बद्रीनारायण
By: नारायण, बद्री Badrinarayan [लेखक., author.].
Publisher: प्रयागराज : लोकभारती प्रकाशन, 2014Description: 108p.ISBN: 9788180315732.Other title: Loksanskriti mein Rashtravad.Subject(s): लोक संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान | पारंपरिक रीति-रिवाजों और परंपराओं में राष्ट्रवाद | सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रवादी भावनाएँDDC classification: 320.54 Summary: प्रस्तुत पुस्तक 'लोकसंस्कृति में राष्ट्रवाद' में शोध को एक ढांचा प्रदान करने के लिये तीन लोक कवियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जो लोक चेतना के तीन काल खण्डों में प्रतिनिधि हैं। लोकसंस्कृति के कुछ अन्य रूपों का उपयोग इतिहास लेखन और लोकसंस्कृति में किया है। इसमें सन् 57 के गदर की झलक भी शामिल है। लोकसंस्कृति को समय में बाँधने के कारण इस अध्ययन की कई सीमाएँ बन गयी हैं। पुस्तक में अन्तः अनुशासनिक तकनीकों एवं प्रविधियों का उपयोग किया गया है। इसमें मौखिक इतिहास की उपलब्ध प्रविधि को विकसित करने का प्रयास है। पुस्तक छह खण्डों में विभाजित है-राष्ट्रवाद का प्रमेय, इतिहास लेखन और लोकसंस्कृति, रचना का काल (1857 से 1900 ई.) / लोक सजगता एवं शुकदेव भगत की संघटना का वृत्तान्त, विरचना का काल (1900-1920 ई.) लोक संस्कृति में स्वीकार और बहिष्कार पुनर्रचना का काल (1920-1947 ई.) लोक चेतना की क्रियात्मक क्षमता का पुनर्निर्माण और कवि कैलाश का संदर्भ तथा निष्कर्ष आदि विषयों का समावेश किया गया है। पुस्तक निश्चय ही पठनीय और संग्रहणीय है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 320.54 BAD-L (Browse shelf) | Available | 53405 |
includes bibliographical references and index.
प्रस्तुत पुस्तक 'लोकसंस्कृति में राष्ट्रवाद' में शोध को एक ढांचा प्रदान करने के लिये तीन लोक कवियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जो लोक चेतना के तीन काल खण्डों में प्रतिनिधि हैं। लोकसंस्कृति के कुछ अन्य रूपों का उपयोग इतिहास लेखन और लोकसंस्कृति में किया है। इसमें सन् 57 के गदर की झलक भी शामिल है। लोकसंस्कृति को समय में बाँधने के कारण इस अध्ययन की कई सीमाएँ बन गयी हैं।
पुस्तक में अन्तः अनुशासनिक तकनीकों एवं प्रविधियों का उपयोग किया गया है। इसमें मौखिक इतिहास की उपलब्ध प्रविधि को विकसित करने का प्रयास है। पुस्तक छह खण्डों में विभाजित है-राष्ट्रवाद का प्रमेय, इतिहास लेखन और लोकसंस्कृति, रचना का काल (1857 से 1900 ई.) / लोक सजगता एवं शुकदेव भगत की संघटना का वृत्तान्त, विरचना का काल (1900-1920 ई.) लोक संस्कृति में स्वीकार और बहिष्कार पुनर्रचना का काल (1920-1947 ई.) लोक चेतना की क्रियात्मक क्षमता का पुनर्निर्माण और कवि कैलाश का संदर्भ तथा निष्कर्ष आदि विषयों का समावेश किया गया है।
पुस्तक निश्चय ही पठनीय और संग्रहणीय है।
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