मै नास्तिक क्यों हु ?
By: सिंह, भगत Bhagat Singh.
Publisher: प्रभात प्रकाशन 2023Other title: Main Nastik Kyun Hoon.Subject(s): Atheism -- Religion -- Philosophy -- India | नास्तिकता -- धर्म -- दर्शन -- भारतDDC classification: 211.8 Summary: [यह लेख भगतसिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार "द पीपल" में प्रकाशित हुआ। इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण, मनुष्य के जन्म, मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता, उसके शोषण, दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है। यह भगतसिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है। स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31 के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में क़द थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगतसिंह की कालकोठरी में पहुंचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, "प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे की तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में भगत सिंह ने यह लेख लिखा। ऐसे ही कई महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह है ये किताब।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 211.8 (Browse shelf) | Available | 54035 |
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211.60954 KUM-L Limiting secularism: the ethics of coexistence in Indian literature and film | 211.60954 TEJ-I Indian secularism: a social and intellectual history 1890-1950 | 211.6095496 REL- Religion, secularism and ethnicity in contemporary Nepal | 211.8 मै नास्तिक क्यों हु ? | 215.3 KAU-G Guru Granth Sahib: | 230 MIS-I Identity, strength and weakness of American Catholics | 230.082 CON- Contemporary feminist theologies : |
[यह लेख भगतसिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार "द पीपल" में प्रकाशित हुआ। इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण, मनुष्य के जन्म, मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता, उसके शोषण, दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है। यह भगतसिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है। स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31 के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में क़द थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगतसिंह की कालकोठरी में पहुंचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, "प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे की तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में भगत सिंह ने यह लेख लिखा। ऐसे ही कई महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह है ये किताब।
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