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प्रेमयोग

By: विवेकानंद, स्वामी Swami Vivekanand.
Publisher: प्रभात प्रकाशन 2023ISBN: 978- 9390605729.Other title: Premyog.Subject(s): Hindu philosophy -- Attachment -- Self-realization | हिंदू दर्शन -- लगाव -- आत्म-साक्षात्कारDDC classification: 294.5 Summary: सब कुछ देखो, सब कुछ करो, सब कुछ छुओ, पर किसी वस्तु में आसक्त मत होओ। ज्योंही वह आसक्ति आयी कि समझो मनुष्य अपने आपको खो बैठा; फिर वह अपना स्वामी नहीं रह जाता, उसी क्षण दास या गुलाम बन जाता है। यदि किसी स्त्री की दृढ़ आसक्ति किसी पुरुष पर हुई, तो वह स्त्री उस पुरुष की गुलाम बन जाती है या वह पुरुष उस स्त्री का गुलाम बन जाता है। पर गुलाम बनने में कोई लाभ नहीं है।
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सब कुछ देखो, सब कुछ करो, सब कुछ छुओ, पर किसी वस्तु में आसक्त मत होओ। ज्योंही वह आसक्ति आयी कि समझो मनुष्य अपने आपको खो बैठा; फिर वह अपना स्वामी नहीं रह जाता, उसी क्षण दास या गुलाम बन जाता है। यदि किसी स्त्री की दृढ़ आसक्ति किसी पुरुष पर हुई, तो वह स्त्री उस पुरुष की गुलाम बन जाती है या वह पुरुष उस स्त्री का गुलाम बन जाता है। पर गुलाम बनने में कोई लाभ नहीं है।

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