समाजशास्त्रीय सिद्धांत: अंतर्विषयक परिप्रेक्ष्य/ सुचित्रा शर्मा, अमरनाथ शर्मा; आभा वीरेंद्र
By: शर्मा, सुचित्रा Suchitra Sharma.
Contributor(s): अमरनाथ शर्मा [लेखक] | आभा वीरेंद्र [लेखक].
Publisher: जयपुर : रावत प्रकाशन, 2023Description: 215p. Include Reference.ISBN: 9788131612491.Other title: Samajshastriya Siddhant: Antarvishayak Pariprekshya.Subject(s): दर्शन -- सामाजिक दर्शन | सामाजिक सिद्धांत -- सामाजिक विज्ञान-दर्शन समाजशास्त्रDDC classification: 301.1 Summary: समाजशास्त्राीय अनुशीलन पर्यावरणमुखी अनुस्थापनों पर आधरित रहा है। इसका उद्भव समाज की दूरगामी समझ और विवेचना पर जोर देता रहा है। व्यक्ति के मनोविज्ञानात्मक पक्ष को समाजशास्त्र के प्रकारात्मक गंभीर चिन्तन और विश्लेषण की आवश्यकता है। प्रत्यक्षवादोत्तर समाजशास्त्र में सैद्धान्तिक परिकल्पनाओं की शुरूआत हस्सर्ल से प्रारंभ कर नृजातिशास्त्र तक पहुंचाना एक कठिन कार्य था। मौजूदा विषयवस्तु सार्वभौमिक रूप से पूर्वगामी समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों को आच्छादित करते हुए विशाल विषय क्षेत्र प्रदान करती है। इस पुस्तक में इसे यथा संभव सारग्रहित उपादेय और संप्रेषणीय बनाया गया है। समाजशास्त्राीय विवेचना का यह कार्य दुष्कर और क्लिष्ट होते हुए भी लेखकों की यही चेष्टा रही कि समाजशास्त्र के इस नये क्षितिज को व्यक्तिपरक अन्तर्दृष्टि से प्रक्षेपित किया जाय, ताकि इस अनुस्थापन से आधार रूप से प्रबुद्धजन के मन और मस्तिष्क में उभरती हुई विश्लेषणात्मक अपेक्षाओं को दिशा मिले। उनके लिए निश्चित रूप से यह नई अवधारणात्मक और विवेचनात्मक संसार के माध्यम से नये गवाक्ष प्रदान करेगा जो प्रकाशमान समाजशास्त्र को सार्थक बनायेगा।Item type | Current location | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 301.1 SHA-S (Browse shelf) | Available | 54145 |
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301 MAU-S Samajikata ke saarv: vartamaan tak ke manav samaj ka ek sthitikathan | 301 SAM- समाजशास्त्रः | 301 SID-S समाजशास्त्र: | 301.1 SHA-S समाजशास्त्रीय सिद्धांत: | 301.20954 VER-B SL1 Bharatiya sanskriti ke rakshak | 301.20954558 DUK-H Haryana ki sanskritik virasat | 301.3 BHA- भारतीय समाजशास्त्र/ |
समाजशास्त्राीय अनुशीलन पर्यावरणमुखी अनुस्थापनों पर आधरित रहा है। इसका उद्भव समाज की दूरगामी समझ और विवेचना पर जोर देता रहा है। व्यक्ति के मनोविज्ञानात्मक पक्ष को समाजशास्त्र के प्रकारात्मक गंभीर चिन्तन और विश्लेषण की आवश्यकता है। प्रत्यक्षवादोत्तर समाजशास्त्र में सैद्धान्तिक परिकल्पनाओं की शुरूआत हस्सर्ल से प्रारंभ कर नृजातिशास्त्र तक पहुंचाना एक कठिन कार्य था। मौजूदा विषयवस्तु सार्वभौमिक रूप से पूर्वगामी समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों को आच्छादित करते हुए विशाल विषय क्षेत्र प्रदान करती है। इस पुस्तक में इसे यथा संभव सारग्रहित उपादेय और संप्रेषणीय बनाया गया है।
समाजशास्त्राीय विवेचना का यह कार्य दुष्कर और क्लिष्ट होते हुए भी लेखकों की यही चेष्टा रही कि समाजशास्त्र के इस नये क्षितिज को व्यक्तिपरक अन्तर्दृष्टि से प्रक्षेपित किया जाय, ताकि इस अनुस्थापन से आधार रूप से प्रबुद्धजन के मन और मस्तिष्क में उभरती हुई विश्लेषणात्मक अपेक्षाओं को दिशा मिले। उनके लिए निश्चित रूप से यह नई अवधारणात्मक और विवेचनात्मक संसार के माध्यम से नये गवाक्ष प्रदान करेगा जो प्रकाशमान समाजशास्त्र को सार्थक बनायेगा।
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