भारतीय सामाजिक व्यवस्था (समाजशास्त रीडर - IV)/ नरेश भार्गव; वेदवान सुधीर; संजय लोढ़ा
Contributor(s): भार्गव,नरेश [संपादक] | वेदवान सुधीर [संपादक] | अरुण चतुर्वेदी [संपादक] | संजय लोढ़ा [संपादक].
Publisher: जयपुर: रावत, 2021Description: xix,408p. Include Reference.ISBN: 9788131611760.Other title: Bhaarateey Saamaajik Vyavastha (samaajashaast Reedar - iv).Subject(s): सामाजिक वर्ग | आदिवासी | सामाजिक -- जातिDDC classification: 301.4054 Summary: भारतीय समाज का स्वरूप समय, परिस्थिति और आवश्यकतानुसार बदलता रहा है। सामाजिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में यही भावना निहित है कि समाज की कोई भी अवस्था स्थाई नहीं है। सारी व्यवस्थाएँ परिवर्तनशील हैं। अनेक ऐसे कारक हैं, जो समाज की व्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं। परिवर्तन की इस प्रक्रिया और प्रकृति के आधार पर कई चिंतकों ने कई अवधारणाओं को प्रस्तुत किया है। ये अवधारणाएँ ना केवल आधुनिकता से जुड़ी थीं, बल्कि इनका सम्बन्ध जाति और वर्ग व्यवस्था से भी रहा। जाति, वर्ग, धर्म, समाज, परम्पराओं, मान्यताओं, विश्वासों में आने वाले बदलावों को इन अवधारणाओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जिसमें आधुनिकीकरण, संस्कृतीकरण, पश्चिमीकरण, लौकिकीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण आदि प्रमुख हैं। भारतीय समाज में गैर-बराबरी भी अन्य समाजों की तरह ही विद्यमान है। गैर-बराबरी के अपने ही स्त्रोत भी हैं, स्वरूप भी हैं और प्रभाव भी। जाति, वर्ग, पिछड़े वर्ग, आदिवासी और दलित तथा अधीनस्थ समूह सम्पूर्ण गैर-बराबरी के अलग-अलग स्थापित स्वरूप हैं। इस पूरी व्यवस्था को समझे बिना भारतीय समाज को नहीं समझा जा सकता है। भारतीय समाज के विविध पक्षों के साथ विभिन्न नृजातिय समूह भी जुड़े हुए हैं। आदिवासी समाज की विशिष्ट आकृतियों, विशिष्ट सामूहिक जीवन और विशिष्ट जीवन शैली का भारतीय समाज व्यवस्था में अपना अलग ही महत्व है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन की भिन्नताओं के कारण इन अनुसूचित जनजातियों की पहचान अलग है। इन आदिवासी समाजों की अपनी समस्याएँ हैं। इस संकलन में भारतीय समाज से जुड़े इन्हीं सभी सन्दर्भों को विभिन्न लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है।Item type | Current location | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 301.4054 BHA- (Browse shelf) | Available | 54153 |
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301.3 BHA- भारतीय समाजशास्त्र/ | 301.3 SIN-M मानवशास्त्र शब्दकोश/ | 301.4054 BHA- भारतीय समाज (समाजशास्त्र रीडर-iii)/ | 301.4054 BHA- भारतीय सामाजिक व्यवस्था (समाजशास्त रीडर - IV)/ | 302.14 RAS- Rashtravad ka ayodhaykand: ramjanmbhoomi andolan aur atmbhay ki rajniti | 302.140954 COM- Sampradayiktha aur bhartiya samaj | 302.20954 SIN-; Sanchar madhyamo ka prabhav |
भारतीय समाज का स्वरूप समय, परिस्थिति और आवश्यकतानुसार बदलता रहा है। सामाजिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में यही भावना निहित है कि समाज की कोई भी अवस्था स्थाई नहीं है। सारी व्यवस्थाएँ परिवर्तनशील हैं। अनेक ऐसे कारक हैं, जो समाज की व्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं। परिवर्तन की इस प्रक्रिया और प्रकृति के आधार पर कई चिंतकों ने कई अवधारणाओं को प्रस्तुत किया है। ये अवधारणाएँ ना केवल आधुनिकता से जुड़ी थीं, बल्कि इनका सम्बन्ध जाति और वर्ग व्यवस्था से भी रहा। जाति, वर्ग, धर्म, समाज, परम्पराओं, मान्यताओं, विश्वासों में आने वाले बदलावों को इन अवधारणाओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जिसमें आधुनिकीकरण, संस्कृतीकरण, पश्चिमीकरण, लौकिकीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण आदि प्रमुख हैं। भारतीय समाज में गैर-बराबरी भी अन्य समाजों की तरह ही विद्यमान है। गैर-बराबरी के अपने ही स्त्रोत भी हैं, स्वरूप भी हैं और प्रभाव भी। जाति, वर्ग, पिछड़े वर्ग, आदिवासी और दलित तथा अधीनस्थ समूह सम्पूर्ण गैर-बराबरी के अलग-अलग स्थापित स्वरूप हैं। इस पूरी व्यवस्था को समझे बिना भारतीय समाज को नहीं समझा जा सकता है। भारतीय समाज के विविध पक्षों के साथ विभिन्न नृजातिय समूह भी जुड़े हुए हैं। आदिवासी समाज की विशिष्ट आकृतियों, विशिष्ट सामूहिक जीवन और विशिष्ट जीवन शैली का भारतीय समाज व्यवस्था में अपना अलग ही महत्व है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन की भिन्नताओं के कारण इन अनुसूचित जनजातियों की पहचान अलग है। इन आदिवासी समाजों की अपनी समस्याएँ हैं। इस संकलन में भारतीय समाज से जुड़े इन्हीं सभी सन्दर्भों को विभिन्न लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है।
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