चरित्रहीन
By: चट्टोपाध्याय ,शरतचंद्र.
Publisher: राधाकृष्ण प्रकाशन ©2019Description: 408p.ISBN: 9788183614177.Summary: नारी का शोषण, समर्पण और भाव-जगत तथा पुरुष समाज में उसका चारित्रिक मूल्यांकन - इससे उभरने वाला अन्तर्विरोध ही इस उपन्यास का केन्द्रबिन्दु है। शरतचन्द्र ने नारी मन के साथ-साथ इस उपन्यास में मानव मन की सूक्ष्म प्रवृत्तियों का भी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, साथ ही यह उपन्यास नारी की परम्परावादी छवि को तोड़ने का भी सफल प्रयास करता है। उपन्यास सवाल उठाता है कि देवी की तरह पूजनीय और दासी की तरह पितृसत्ता के अधीन घुट-घुटकर जीने वाली स्त्री के साथ यह अन्तर्विरोध और विडम्बना क्यों है? उपन्यास ‘चरित्र’ की अवधारणा को भी पुनःपरिभाषित करता है। चरित्र को स्त्री के साथ ही अनिवार्य गुण की तरह क्यों जोड़ा जाता है? वह कैसे चरित्रहीन हो जाती है? उसे चरित्रहीन कहने वाला कौन होता है? यह प्रसिद्ध उपन्यास बार-बार हमें इन सवालों के सामने ला खड़ा करता है। नारी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में दक्ष शरत् बाबू इस उपन्यास में उस परिवर्तन को भी रेखांकित करते हैं जो समाज में आया है इसलिए दशकों पहले लिखा गया यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उल्लेखनीय है कि इस उपन्यास का अनुवाद नए सिरे से किया गया है, उन तमाम अंशों को साथ रखते हुए जो अभी तक उपलब्ध अनुवादों में छोड़ दिए गए थे। एक सम्पूर्ण उत्कृष्ट उपन्यास।.Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | Available | 54597 |
नारी का शोषण, समर्पण और भाव-जगत तथा पुरुष समाज में उसका चारित्रिक मूल्यांकन - इससे उभरने वाला अन्तर्विरोध ही इस उपन्यास का केन्द्रबिन्दु है। शरतचन्द्र ने नारी मन के साथ-साथ इस उपन्यास में मानव मन की सूक्ष्म प्रवृत्तियों का भी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, साथ ही यह उपन्यास नारी की परम्परावादी छवि को तोड़ने का भी सफल प्रयास करता है। उपन्यास सवाल उठाता है कि देवी की तरह पूजनीय और दासी की तरह पितृसत्ता के अधीन घुट-घुटकर जीने वाली स्त्री के साथ यह अन्तर्विरोध और विडम्बना क्यों है? उपन्यास ‘चरित्र’ की अवधारणा को भी पुनःपरिभाषित करता है। चरित्र को स्त्री के साथ ही अनिवार्य गुण की तरह क्यों जोड़ा जाता है? वह कैसे चरित्रहीन हो जाती है? उसे चरित्रहीन कहने वाला कौन होता है? यह प्रसिद्ध उपन्यास बार-बार हमें इन सवालों के सामने ला खड़ा करता है। नारी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में दक्ष शरत् बाबू इस उपन्यास में उस परिवर्तन को भी रेखांकित करते हैं जो समाज में आया है इसलिए दशकों पहले लिखा गया यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उल्लेखनीय है कि इस उपन्यास का अनुवाद नए सिरे से किया गया है, उन तमाम अंशों को साथ रखते हुए जो अभी तक उपलब्ध अनुवादों में छोड़ दिए गए थे। एक सम्पूर्ण उत्कृष्ट उपन्यास।.
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