Normal view MARC view ISBD view

विचार का आइना कला साहित्य संस्कृति

By: प्रेमचंद.
Publisher: राजकमल प्रकाशन ©2023Description: 184p.ISBN: 9788195965618.Summary: विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है। प्रेमचन्द ऐसे युगप्रवर्तक लेखक हैं जो हिन्दी और उर्दू कथा साहित्य को एक मुकम्मल शुरुआत देते हैं। वे कहानी और उपन्यास को यथार्थवाद की जनपक्षधर जमीन पर ले आए जहाँ जनसाधारण को नायकत्व मिला। उनकी कहानियों और उपन्यासों ने न सिर्फ हिन्दी कथा साहित्य के विकास के लिए नए द्वार खोले बल्कि उनका गहरा असर समूचे भारतीय कथा साहित्य पर पड़ा। बतौर सम्पादक और चिन्तक उन्होंने जो निबन्ध लिखे, वे भारतीय समाज की बनावट और बुनावट की गहरी पड़ताल करते हैं। वे उन अनेक समस्याओं और विसंगतियों की सटीक पहचान करते हैं जिनसे भारतीय समाज आज तक जूझ रहा है। हमें उम्मीद है कि कठिन वर्तमान से जूझते हुए उनके कला, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी प्रतिनिधि निबन्धों की इस किताब में हमें अनेक समकालीन सवालों के जवाब के साथ-साथ विचारणीय नए सवाल भी मिलेंगे।
    average rating: 0.0 (0 votes)

विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है। प्रेमचन्द ऐसे युगप्रवर्तक लेखक हैं जो हिन्दी और उर्दू कथा साहित्य को एक मुकम्मल शुरुआत देते हैं। वे कहानी और उपन्यास को यथार्थवाद की जनपक्षधर जमीन पर ले आए जहाँ जनसाधारण को नायकत्व मिला। उनकी कहानियों और उपन्यासों ने न सिर्फ हिन्दी कथा साहित्य के विकास के लिए नए द्वार खोले बल्कि उनका गहरा असर समूचे भारतीय कथा साहित्य पर पड़ा। बतौर सम्पादक और चिन्तक उन्होंने जो निबन्ध लिखे, वे भारतीय समाज की बनावट और बुनावट की गहरी पड़ताल करते हैं। वे उन अनेक समस्याओं और विसंगतियों की सटीक पहचान करते हैं जिनसे भारतीय समाज आज तक जूझ रहा है। हमें उम्मीद है कि कठिन वर्तमान से जूझते हुए उनके कला, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी प्रतिनिधि निबन्धों की इस किताब में हमें अनेक समकालीन सवालों के जवाब के साथ-साथ विचारणीय नए सवाल भी मिलेंगे।

There are no comments for this item.

Log in to your account to post a comment.