Normal view MARC view ISBD view

विचार का आइना कला साहित्य संस्कृति : मुक्तिबोध

By: मुक्तिबोध.
Contributor(s): बसंत त्रिपाठी [संपादक].
Publisher: दिल्ली : लोकभारती प्रकाशन, ©2023Description: 168p.ISBN: 9788195965601.Summary: विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है। मुक्तिबोध ऐसे प्रगतिशील कवि, विचारक हैं जिनके लिखे हुए की प्रासंगिकता दिन पर दिन बढ़ती ही गई है। उनके निबन्धों ने हिन्दी साहित्य और आलोचना पर गहरा असर छोड़ा है। उन्होंने अपने निबन्धों में मध्यवर्ग के सघन और रचनात्मक आत्मसंघर्षों को स्वर देते हुए कला-चिन्तन सम्बन्धी नया सौन्दर्यशास्त्र विकसित किया जिसका असर ऐसा व्यापक रहा कि उनके बाद आलोचना और साहित्य के सौन्दर्यशास्त्र की शब्दावली हमेशा के लिए बदल गई। परवर्ती रचनाकारों के लिए वे सतत रोशनी देनेवाली एक मशाल की तरह रहे। हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब हर उस भारतीय को अपनी अनिवार्य जरूरत की तरह लगेगी जो साहित्य, संस्कृति और कला से जुड़े हुए सवालों से टकराते हुए अपनी समृद्ध और सुदीर्घ परम्परा की तरफ देखता है।
    average rating: 0.0 (0 votes)

विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है। मुक्तिबोध ऐसे प्रगतिशील कवि, विचारक हैं जिनके लिखे हुए की प्रासंगिकता दिन पर दिन बढ़ती ही गई है। उनके निबन्धों ने हिन्दी साहित्य और आलोचना पर गहरा असर छोड़ा है। उन्होंने अपने निबन्धों में मध्यवर्ग के सघन और रचनात्मक आत्मसंघर्षों को स्वर देते हुए कला-चिन्तन सम्बन्धी नया सौन्दर्यशास्त्र विकसित किया जिसका असर ऐसा व्यापक रहा कि उनके बाद आलोचना और साहित्य के सौन्दर्यशास्त्र की शब्दावली हमेशा के लिए बदल गई। परवर्ती रचनाकारों के लिए वे सतत रोशनी देनेवाली एक मशाल की तरह रहे। हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब हर उस भारतीय को अपनी अनिवार्य जरूरत की तरह लगेगी जो साहित्य, संस्कृति और कला से जुड़े हुए सवालों से टकराते हुए अपनी समृद्ध और सुदीर्घ परम्परा की तरफ देखता है।

There are no comments for this item.

Log in to your account to post a comment.