स्त्री चिन्तन : सामाजिक-साहित्यिक दृष्टि / Istri Chintan: samajik-sahityik drishti edited by:शर्मा, गोपीराम (Sharma, Gopiram)बैरवा, घनश्याम (Bairwa, Ghanshyam) संपादक डॉ गोपीराम शर्मा, डॉ घनश्याम बैरवा - 2nd ed. - नई दिल्ली : वाणी प्रकाशन, 2022. - 288p.

Includes bibliographical references and index.

"स्त्री चिन्तन : सामाजिक-साहित्यिक दृष्टि - मनुष्य और मनुष्य समाज की आज तक की जीवन-यात्रा ने पर्याप्त प्रगति की है। हमारा समाज उत्तरोत्तर सभ्य और विकसित समाज में बदल रहा है। लेकिन मनुष्य समाज की इस वैभवपूर्ण यात्रा में यह बहुत दुखद है कि समाज का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष 'स्त्री' समान रूप से पोषित नहीं हो पाया। हमारी सामाजिक व्यवस्था का मुख्य अंग निश्चय रूप से 'स्त्री' है। स्त्री की अनुपस्थिति हो तो समाज व्यवस्थित कभी नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्तर पर स्त्री मज़बूत, विश्वसनीय और आदतन विचारों और रिश्ते निभाने में पुरुषों की तुलना में अधिक व्यवस्थित होती है। मनोविज्ञान तो यह भी कहता है कि किसी स्त्री में स्त्री तत्त्व के साथ पुरुष तत्त्व भी विद्यमान होता है और इसी प्रकार पुरुष में पुरुषतत्व के साथ स्त्री तत्त्व। समाज, सहयोग, साहचर्य व सामुदायिक भावों के विकसित होने के लिए पुरुष में 'स्त्री तत्त्व' को बढ़ा हुआ होना आवश्यक है। जब पुरुष तत्त्व बढ़ता है तो अलगाव, विखण्डन व संघर्ष जन्म लेता है। इस पुस्तक का उद्देश्य है कि यह स्त्री-चिन्तन के विविध बिन्दुओं का उद्घाटन करती है जो स्त्री विमर्श में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। "


Hindi.

9789355183453


संस्कृत साहित्य.
साहित्य में महिलाएँ.
Hindi literature.

891.43809 / STR-