भारतीय इस्लामी संस्कृति /
Bhartiya Islami Sanskriti
जाफ़र रज़ा
- इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन, 2013.
- 392p .
Includes bibliographical references and index.
प्रस्तुत पुस्तक में इस्लामी संस्कृति को मूलरूप में मुस्लिम समाज में इस्लामी प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में समझने की चेष्टा की गयी है। यहाँ इस तथ्य को स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि मुसलमानों के लिए इस्लाम मात्र ईश वन्दना का माध्यम ही नहीं है, वरन् मुसलमानों का अक़ीदा और ईमान होने के साथ-ही-साथ एक विशेष जीवन-पद्धति का नाम है। वे कुअन को आसमानी ग्रन्थ मानते हैं, जो इस्लामी पैग़म्बर पर श्रुतिप्रकाश के रूप में उत्प्रेरित हुआ। दूसरा आधार इस्लामी पैग़म्बर का जीवन एवं कृतित्व है। इन्हीं के आधार पर समस्त धार्मिक समाधान प्राप्त होते हैं। कुत्सित एवं अधिमान्य तथा अनुज्ञेय एवं वर्जित विषयों का निर्धारण होता है। यही मानक इस्लामी संस्कृति हेतु भी है। इस्लामी संस्कृति में कुअन तथा इस्लामी पैग़म्बर के जीवन एवं कृतित्व को मानक माना गया है। पाश्चात्य में इस्लाम तथा मुसलमानों के विषय में अध्ययन करते समय उपर्युक्त तथ्य को अधिकांश ध्यान में नहीं रखा गया है, बल्कि संस्कृति के व्यावहारिक पक्ष को क़ुर्बान तथा पैग़म्बर के द्वारा स्थापित मानक पर न रखते हुए मुसलमानों के कार्यकलाप के आधार पर देखते हैं। अतः सही निष्कर्ष पाने में असमर्थ हो जाते हैं। धर्म-विश्वासों का अन्तर खाईं बनकर बीच में आ जाता है। उदाहरणार्थ, कुअन के विषय में प्रत्येक मुसलमान का मत है कि इसका प्रत्येक शब्द ईश्वर की ओर से उत्प्रेरित किया गया है। इस्लामी पैग़म्बर का मन्तव्य उनकी हदीसों के रूप में वर्तमान है। यद्यपि उनका मन्तव्य भगवदिच्छा के आधार पर ही है, परन्तु वे ईश्वर की वाणी के रूप में नहीं हैं। कुअन का सम्पादन इस्लामी पैग़म्बर के जीवनकाल में ही हो गया था। उसमें कोई शब्द घटाया बढ़ाया नहीं गया है, जिस प्रकार अपने मूलरूप में श्रुतिप्रकाश हुआ था, अक्षरशः पुस्तक रूप में मुद्रित होने के अतिरिक्त विश्व भर में सहस्रों लोगों को कण्ठस्थ है। हदीसें बाद में एकत्र की गयीं। पाश्चात्य विद्वानों का मत भिन्न है, वे कुअन को श्रुतिप्रकाश के रूप में स्वीकार नहीं करते। अधिकांश पाश्चात्य विद्वान् कुअन तथा हदीस के बीच अन्तर भी नहीं कर पाते और दोनों को इस्लामी पैग़म्बर से सम्बद्ध करने की भयावह भूल कर बैठते हैं, जिससे इस्लामी संस्कृति के विषय में उनका संज्ञान एवं निष्कर्ष असत्य पर आधारित हो जाता है।