प्राणों में घुले हुए रंग / फणीश्वरनाथ रेणु
By: रेणु, फणीश्वरनाथ [Renu, Phanishwarnath] [लेखक [author]].
Publisher: नई दिल्ली : वाणी प्रकाशन, 2018Description: 232p.ISBN: 9788170552628.Other title: Pranon mein ghule hue rang.Subject(s): हिंदी साहित्य | लघु कथाएँ, हिन्दी | निबंध, हिंदी | नाटक, हिन्दी | संस्मरण, हिन्दी | साहित्य में भावनाएँDDC classification: 891.43371 Summary: इस संग्रह में रेणु की इतनी विधाओं में लिखी गयी रचनाओं को एक साथ प्रकाशित करने का उद्देश्य यह है कि इस संग्रह के द्वारा पाठकों को रेणु की 'बहुमुखी प्रतिभा' से परिचय एवं उनकी अप्रकाशित असंकलित यानी अप्राप्य रचनाओं से पाठकों का साक्षात्कार एक ही साथ हो। कहानी, रिपोर्ताज़, नाटक, संस्मरण, निबन्ध, पत्र और पटकथा - ये सात विधाएँ सात रंग की तरह हैं, जो एक-दूसरे से अलग होते हुए भी अभिन्न हैं । इन सभी के द्वारा रेणु के प्राणों में घुले हुए सभी रंग एवं भाव प्रकट हुए हैं। कुछ रंग उदास, मटमैले हैं, तो कुछ चटक, कुछ पीले तो कुछ टहटह लाल, कहीं-कहीं सफेद रंग दूर तक फैला दिखाई देता है, तो कभी अँधेरे की तरह काला रंग मन में घर करने लगता है। ...रेणु की ये रचनाएँ जीवन के एक-एक भाव को, एक-एक रंग को ...यानी कि जीवन को समग्रता के साथ देखती, परखती और प्रस्तुत करती हैं। रेणु के लिए कोई भी रंग ख़राब नहीं है, वे एक ऐसे बड़े चित्रकार हैं, जो हर रंग से अपने भावात्मक तादात्म्य को स्थापित करता है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Books | NASSDOC Library | 891.43371 REN-P (Browse shelf) | Available | 53460 |
Includes bibliographical references and index.
इस संग्रह में रेणु की इतनी विधाओं में लिखी गयी रचनाओं को एक साथ प्रकाशित करने का उद्देश्य यह है कि इस संग्रह के द्वारा पाठकों को रेणु की 'बहुमुखी प्रतिभा' से परिचय एवं उनकी अप्रकाशित असंकलित यानी अप्राप्य रचनाओं से पाठकों का साक्षात्कार एक ही साथ हो। कहानी, रिपोर्ताज़, नाटक, संस्मरण, निबन्ध, पत्र और पटकथा - ये सात विधाएँ सात रंग की तरह हैं, जो एक-दूसरे से अलग होते हुए भी अभिन्न हैं । इन सभी के द्वारा रेणु के प्राणों में घुले हुए सभी रंग एवं भाव प्रकट हुए हैं। कुछ रंग उदास, मटमैले हैं, तो कुछ चटक, कुछ पीले तो कुछ टहटह लाल, कहीं-कहीं सफेद रंग दूर तक फैला दिखाई देता है, तो कभी अँधेरे की तरह काला रंग मन में घर करने लगता है। ...रेणु की ये रचनाएँ जीवन के एक-एक भाव को, एक-एक रंग को ...यानी कि जीवन को समग्रता के साथ देखती, परखती और प्रस्तुत करती हैं। रेणु के लिए कोई भी रंग ख़राब नहीं है, वे एक ऐसे बड़े चित्रकार हैं, जो हर रंग से अपने भावात्मक तादात्म्य को स्थापित करता है।
Hindi.
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