000 03321nam a22002657a 4500
999 _c37626
_d37626
020 _a9789388434812
041 _ahin-
082 _a808.7
_bPAR-A
100 _aपरसाई, हरिशंकर
_qParasai, Harishankar
_eलेखक.
_eauthor.
245 _aअपनी अपनी बीमारी /
_cहरिशंकर परसाई
246 _aApni Apni Bimari
260 _aनई दिल्ली :
_bवाणी प्रकाशन,
_c2019 .
300 _a139p.
504 _aIncludes bibliographical references and index.
520 _aहास्य और व्यंग्य की परिभाषा करना कठिन है। यह तय करना भी कठिन है कि कहाँ हास्य खत्म होता है और व्यंग्य शुरू होता है। व्यंग्य से हँसी भी आ सकती है, पर इससे वह हास्य नहीं हो जाता। मुख्य बात है कथित वस्तु का उद्देश्य और सरोकार क्या है । व्यंग्य का सामाजिक सरोकार होता है। इस सरोकार से व्यक्ति नहीं छूटता । श्रेष्ठ रचना चाहे वह किसी भी विधा में क्यों न हो, अनिवार्यतः और अन्ततः व्यंग्य ही होती है। इस अर्थ में हम व्यंग्य को चाहें तो तीव्रतम क्षमताशाली व्यंजनात्मकता के रूप में देख सकते हैं। व्यंग्य सहृदय में हलचल पैदा करता है। अपने प्रभाव में व्यंग्य करुण या कटु कुछ भी हो सकता है, मगर वह बेचैनी ज़रूर पैदा करेगा। पीड़ित, मजबूर, गरीब, शारीरिक विकृति का शिकार, नारी, नौकर आदि को हास्य का विषय बनाना कुरुचिपूर्ण और क्रूर है । लेखक को यह विवेक होना चाहिए कि किस पर हँसना और किस पर रोना पीटनेवाले पर भी हँसना और पिटनेवाले पर भी हँसना विवेकहीन हास्य है। ऐसा लेखक संवेदना-शून्य होता है।
546 _aHindi.
650 _aहास्य और व्यंग्य.
650 _aसामाजिक आलोचना.
650 _aसाहित्यिक आलोचना.
650 _aव्यंग्य की सामाजिक भूमिका.
650 _aहास्य प्रभाव.
650 _aसामाजिक मुद्दे.
650 _aहास्य की नैतिकता.
942 _2ddc
_cBK