000 02970nam a22002537a 4500
999 _c37631
_d37631
020 _a9789326352901
041 _ahin
082 _a954.035
_bJOS-H
100 _aजोशी, दिनकर [Joshi, Dinkar]
_e लेखक [author]
245 _aहिन्द स्वराज /
_cदिनकर जोशी
246 _aHind Swaraj
250 _a2nd ed.
260 _aनई दिल्ली :
_bभारतीय ज्ञानपीठ,
_c2016.
300 _a123p.
500 _aगुजराती से अनुवाद: नवनीत ठाकुर
504 _aIncludes bibliographical references and index.
520 _aमहात्मा गाँधी आज भी अपने दर्शन में सर्वस्पर्शी हैं। जनतन्त्र की पहचान भारतीय जन के रूप में गाँधी करते हैं। उनकी दृष्टि में सब नागरिक एक समान हैं। देश और उसका जनतन्त्र भाषा, धर्म, जाति आदि में रहते हुए उससे ऊपर हैं। 'हिन्द स्वराज' की धारणा में उनका दर्शन न्याय, सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों पर भी समान है। गाँधी मताधिकार से लेकर सामाजिक समरसता, आंशिक समानता, शिक्षा का अधिकार और गरीबी उन्मूलन के स्वदेशी उपायों पर विमर्श प्रस्तुत करते हैं। इन सारे बिन्दुओं पर गाँधी आत्मबल के मार्ग को प्राथमिकता देते हैं। इस मार्ग पर यान्त्रिकीकरण के खतरों के प्रति आगाह करते हुए गाँधी इस देश का सम्यक् और विवेकसंगत रोडमैप देश के सामने रखते हैं । दिनकर जोशी आज सर्वाधिक प्रासंगिक 'हिन्द 'स्वराज' की अवधारणा की एक बार पुनः व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। यह किताब इक्कीसवीं सदी के लिए एक ज़रूरी पाठ है।
546 _aHindi.
650 _aराष्ट्रवाद.
650 _aभारत.
650 _aहिंद स्वराज (गांधी, महात्मा).
650 _aराजनीति और सरकार.
942 _2ddc
_cBK