000 03935nam a2200253 4500
999 _c38398
_d38398
020 _a9788183612876
041 _ahin
082 _a891.433
_bSHI-C
100 1 _aशिवानी
_qShivani
_eलेखक [author].
245 1 0 _aचल खुसरो घर आपने /
_cशिवानी
246 _aChal Khusro Ghar Aapne
260 _aदिल्ली :
_bराधाकृष्ण प्रकाशन,
_c2019.
300 _a132p.
504 _aIncludes bibliographical references and index.
520 _aकैसी विचित्र पुतलियाँ लग रही थीं मालती की। जैसे दगदगाती हीरे की दो कनियाँ हों. बार-बार वह अपनी पतली जिला को अपने रक्तवर्णी अधरों पर फेर रही थी, यह तो नित्य की सौम्य शान्त स्वामिनी नहीं, जैसे भयंकर अग्निशिखा लपटें ले रही थी...।' यह कहानी है। कुमुद की, जिसे बिगड़ैल भाई-बहनों और आर्थिक, पारिवारिक परिस्थितियों ने सुदूर बंगाल जाकर एक राजासाहब की मानसिक रूप से बीमार पत्नी की परिचर्या का दुरूह भार थमा दिया है। मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों का मनोसंसार, निम्नमध्यवर्गीय परिवार की कमासुत अनब्याही बेटी और उसकी ग्लानि से दबी जाती माँ का मनोविज्ञान, शिवानी के पारस स्पर्श से समृद्ध होकर इस उपन्यास को एक अद्भुत नाटकीय कलेवर और पठनीयता देते हैं। शिवानी का 'विवर्त' मानव जीवन की रहस्यमयता का एक विलक्षण पहलू प्रस्तुत करता है। चरित्र नायिका ललिता गरीब माता-पिता की सात पुत्रियों में सबसे छोटी होने पर भी स्वतंत्र मेधा और तेजस्विनी है और डबल एम.ए. करके हेडमिस्ट्रेस बन जाती है। वह विवाह नहीं करना चाहती और आने वाले सभी रिश्तों को ठुकरा देती है परन्तु प्रारब्ध उसके साथ ऐसा खेल खेलता है कि वह स्तब्ध रह जाती है। अपने अन्य सभी उपन्यासों की भाँति शिवानी का यह उपन्यास भी पाठक को मंत्र-मुग्ध कर देने में समर्थ है
546 _aHindi.
650 _aसाहित्य में पारिवारिक रिश्ते.
650 _aसाहित्य में मानसिक स्वास्थ्य.
650 _aसाहित्य में सामाजिक वर्ग.
650 _aसाहित्य में महिलाएँ.
650 _aभारतीय कथा साहित्य (हिन्दी).
650 _aमहिला लेखिकाएँ, हिन्दी.
942 _2ddc
_cBK