000 | 03508nam a2200193 4500 | ||
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999 |
_c38403 _d38403 |
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020 | _a9788126712953 | ||
041 | _ahin- | ||
082 |
_a572.954 _bALV-A |
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100 | 1 |
_aएलविन, वेरियर _aWarrior, Alvin _eलेखक. _eauthor. _qWarrior Alvin |
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245 | 1 | 0 |
_aअगरिया / _cवेरियर एलविन |
246 | _aAgariya | ||
260 |
_aदिल्ली : _bराजकमल प्रकाशन, _c2011. |
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300 | _a332p. | ||
504 | _aIncludes bibliographical references and index. | ||
520 | _a'अगरिया' शब्द का अभिप्राय संभवतः आग पर काम करने वाले लोगों से है अथवा आदिवासियों के देवता, अग्यासुर से, जिनका जन्म लौ से हुआ, माना जाता है। अगरिया मध्य भारत के लोहा पिघलाने वाले और लोहारी करने वाले लोग हैं जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाते हैं लेकिन 'अगरिया क्षेत्र' को डिंडोरी से लेकर नेतरहाट तक रेखांकित किया जा सकता है। गोंड, बैगा और अन्य आदिवासियों से मिलते-जुलते रिवाजों और आदतों के कारण अगरिया की जीवन-शैली पर बहुत कम अध्ययन किया गया है। हालाँकि उनके पास अपनी एक विकसित टोटमी सभ्यता है और मिथकों का अकूत भंडार भी, जो उन्हें भौतिक सभ्यता से बचाकर रखता है और उन्हें जीवनीशक्ति देता है। इस पुस्तक के बहाने यह श्रेय प्रमुख नृतत्त्वशास्त्री वेरियर एलविन को जाता है कि उन्होंने अगरिया जीवन और संस्कृति को इसमें अध्ययन का विषय बनाया है। एलविन के ही शब्दों में, मिथक और शिल्प का संगम ही इस अध्ययन का केन्द्रीय विषय है जो अगरिया को विशेष महत्त्व प्रदान करता है। इसके विभिन्न अध्यायों में अगरिया इतिहास, संख्या और विस्तार, मिथक, टोना-टोटका, शिल्प, आर्थिक स्थिति और पतन की चर्चा एव विश्लेषण के माध्यम से एक वैविध्यपूर्ण संस्कृति, जिसका अब पतन हो चुका है, की आश्चर्यजनक आंतरिक झाँकी प्रदान की गई है। | ||
546 | _aHindi. | ||
650 | _aअगरिया (इंडिक लोग). | ||
942 |
_2ddc _cBK |