000 | 03408nam a2200253 4500 | ||
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999 |
_c38404 _d38404 |
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020 | _a9788171198399 | ||
041 | _ahin | ||
082 |
_a891.4327 _bBHA-M |
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100 | 1 |
_aभंडारी, मन्नू _qBhandari, Mannu _eलेखक. _eauthor. |
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245 | 1 | 0 |
_aमहाभोज / _cमन्नू भंडारी |
246 | _aMahabhoj | ||
260 |
_aदिल्ली : _bराधाकृष्ण प्रकाशन, _c2022. |
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300 | _a168p. | ||
504 | _aIncludes bibliographical references and index. | ||
520 | _aमन्नू भंडारी का महाभोज उपन्यास इस धारणा को तोड़ता है कि महिलाएँ या तो घर-परिवार के बारे में लिखती हैं, या अपनी भावनाओं की दुनिया में ही जीती मरती हैं। महाभोज विद्रोह का राजनैतिक उपन्यास है। जनतंत्र में साधारण जन की जगह कहाँ है? राजनीति और नौकरशाही के सूत्रधारों ने सारे ताने-बाने को इस तरह उलझा दिया है कि वह जनता को फाँसने और घोटने का जाल बनकर रह गया है। इस जाल की हर कड़ी महाभोज के दा साहब की उँगलियों के इशारों पर सिमटती और खुलती है। हर सूत्र के वे कुशल संचालक हैं। उनकी सरपरस्ती में राजनीति के खोटे सिक्के समाज चला रहे हैं-खरे सिक्के एक तरफ़ फेंक दिए गए हैं। महाभोज उपन्यास भ्रष्ट भारतीय राजनीति के नग्न यथार्थ को प्रस्तुत करता है। अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में इस महत्वपूर्ण उपन्यास के अनुवाद हुए हैं और महाभोज नाटक तो दर्जनों भाषाओं में सैकड़ों बार मंचित होता रहा है। 'नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा' (दिल्ली) द्वारा मंचित महाभोज नाटक राष्ट्रीय नाट्य मंडल की गौरवशाली प्रस्तुतियों में अविस्मरणीय है। हिन्दी के सजग पाठक के लिए अनिवार्य उपन्यास है महाभोज । | ||
546 | _aHindi. | ||
650 | _aहिंदी कथा साहित्य. | ||
650 | _aहिंदी नाटक. | ||
650 | _aशिष्टाचार और रीति-रिवाज. | ||
650 | _aराजनीतिक भ्रष्टाचार. | ||
650 | _aभारत. | ||
650 | _aराजनीति और सरकार. | ||
942 |
_2ddc _cBK |