000 | 02144nam a2200217 4500 | ||
---|---|---|---|
999 |
_c38424 _d38424 |
||
020 | _a9788183612548 | ||
041 | _ahin- | ||
082 |
_a891.4435 _bMIS-P |
||
100 |
_aमिश्र, गोविन्द _qMishr, Govind _eलेखक. _eauthor. |
||
245 |
_aपाँच आँगनों वाला घर / _cगोविन्द मिश्र |
||
246 | _aPanch Aangano wala Ghar | ||
260 |
_aदिल्ली : _bराधाकृष्ण प्रकाशन, _c2019. |
||
300 | _a216p. | ||
504 | _aIncludes bibliographical references and index. | ||
520 | _aकरीब पचास वर्षों में फैली पाँच आँगनों वाला घर के सरकने की कहानी दरअसल तीन पीढ़ियों की कहानी है- एक वह जिसने 1942 के आदर्शों की साफ़ हवा अपने फेफड़ों में भरी, दूसरी वह जिसने उन आदर्शों को धीरे-धीरे अपनी हथेली से झरते देखा और तीसरी वह जो उन आदर्शों को सिर्फ पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ सकी। परिवार कैसे उखड़कर सिमटता हुआ करीब-करीब नदारद होता जा रहा है - व्यक्ति को उसकी वैयक्तिकता के सहारे अकेला छोड़कर ! गोविन्द मिश्र के इस सातवें उपन्यास को पढ़ना अकेले होते जा रहे आदमी की उसी पीड़ा से गुज़रना है। | ||
546 | _aHindi. | ||
650 |
_aपारिवारिक सागा _xफिक्शन. |
||
650 |
_aभारत _y20वीं सदी _xसामाजिक परिस्थितियाँ _xकथा. |
||
650 | _aहिन्दी कथा. | ||
942 |
_2ddc _cBK |