000 | 02707 a2200157 4500 | ||
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999 |
_c38823 _d38823 |
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020 | _a9789355213679 | ||
082 |
_a294.5 _bVIV-H |
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100 |
_aविवेकानंद, स्वामी _eAuthor |
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245 |
_aहिन्दु धर्म हमारा जनप्राप्त धर्म/ _cBy स्वामी विवेकानंद |
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260 |
_bप्रभात प्रकाशन, _c2023 _aनई दिल्ली: |
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300 |
_a168p. _e22cm. |
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520 | _aतुम लोग आर्य, ऋषियों के वशंधर हो ऋषियों के, जिनकी महत्ता की तुलना नहीं हो सकती। मुझे इसका गर्व है कि मैं तुम्हारे देश का एक नगण्य नागरिक हूँ। अतएवं भाइयो, आत्मविश्वासी बनो। पूर्वजों के नाम से अपने को लज्जित नहीं, गौरवान्वित समझो। याद रहे, किसी का अनुकरण कदापि न करना, कदापि नहीं। जब कभी तुम औरों के विचारों का अनुकरण करते हो, तुम अपनी स्वाधीनता गँवा बैठते हो। —इसी पुस्तक से प्रस्तुत पुस्तक 'हिंदू धर्म : हमारा जन्मप्राप्त धर्म' में स्वामीजी ने सरल शब्दों में वेदप्रणीत हिंदू धर्म, उसकी सार्वभौमिकता, उसकी उदारता, व्यापकता और सर्वधर्म समभाव की उसकी मौलिकता की अनिर्वचनीय व्याख्या की है और मानव-मन में हिंदू धर्म को लेकर सदा से पनपते कतिपय अनुत्तरित प्रश्नों के सटीक व तार्किक उत्तर दिए हैं। एक अत्यंत प्रेरक, रोचक और ओजपूर्ण पुस्तक, जो जीवन में दैविक आशा का संचार करती है। | ||
650 |
_aHindutva _vHinduism _xHindu nationalism _zIndia |
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650 |
_aहिंदुत्व _vहिन्दू धर्म _xहिंदू राष्ट्रवाद _zभारत |
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942 |
_2ddc _cBK |