000 06346 a2200205 4500
999 _c38834
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020 _a978- 9350481790
082 _a954.025
_bDAV-S
100 _aदवे,अनिल माधव
_eAuthor
245 _aशिवाजी व् सुराज/
_cअनिल माधव दवे
246 _aShivaji and Suraj
260 _bप्रभात प्रकाशन:
_c2023
_aनई दिल्ली,
300 _a229p.
_billustrations (some color), maps (color);
_e24cm.
520 _aशिवाजी और स्वराज हमारी आज की परिस्थिति में हम सबको आवश्यक प्रतीत होनेवाला नया निर्माण शिवाजी महाराज द्वारा जिर्पित तंत्र नेतृत्व व समाज की उन्हीं शश्‍वत आधारभूत विशेषताओं को ध्यान में रखकर करना पड़ेगा। इस दृष्‍टि से अध्ययन व चिंतन को गति देनेवाला यह ग्रंथ है। शिवाजी ने सभी वर्गों को राष्‍ट्रीय ता की भावना से ओतप्रोत किया और एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें सभी विभागों का सृजन एवं संचालन कुशलता से हो। पुर्तगाली। वाइसराय काल द सेंट ह्विïसेंट ने महाराज की तुलना सिकंदर और सीजर से की। दुर्भाग्य से कुछ भारतीय इतिहासकारों ने शिवाजी को समुचित सम्मान नहीं दिया। प्रकाश सिंह भूतपूर्व महानिदेशक सीमा सुरक्षा बल एवं महानिदेशक उत्तर प्रदेश पुलिस/असम पुलिस While many of us are familiar with shivaji’s military feats, his administrative acumen and wisdom were a revelation. The deep thought behind his prescriptions has immense relevance for today’s administrators and these chapters would immensely benefit those who have chosen a career in public service. With regards, Vijay Singh Former Defense Secretary Government of India भारत केवल सौदागरों के खेल का मैदान बन गया है, यह कटु है, पर सत्य है। शिवाजी महाराज की राजनीति और राज्यनीति मानों अमृत और संजीवनी दोनों ही हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की शासन व्यवस्था एक सप्रयोग सिद्ध किया हुआ महाप्रकल्प ही है। श्री अनिल दबे ने इस पुस्तक में हमें उसी से परिचित करवाया है। भारत की संसद और प्रत्येक विधानसभा के सदस्य को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए। बाबा साहेब पुरंदरे, पुणे * राजा को (नेतृत्वकर्ता ने) स्वयं के खाने-पीने का समय निश्‍चित करना चाहिए। सामान्यत: उसे नहीं बतलाना चाहिए। राजा को नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। अपने आस-पास कार्यरत व्यक्‍तियों को भी इन पदार्थों का सेवन नहीं करने देना चाहिए। राजा के पास जब शस्‍‍त्र न हो तो उसे लंबे यमस तक निरंतर धरती को नहीं देखते रहना चाहिए। * कार्य के प्रारंभ में शपथ लेते समय उसका (नायक का) स्वकोष व राज कोष कितना था? और जब वह निवृत होकर गया तब दोनों कोष की क्या स्थिती थी? इनका अंतर ही उसका वित्तिय चरित्र है। * शिवाजी—''कान्होजी, आपको इसे मृत्युदंड न देने का वचन दिया था सो उसका पालन किया लेकिन कोई भी सजा (खंडोजी खेपडा को) न दी जाती तो स्वराज में लोगों को क्या संदेश जाता कि देशद्रोह और परिचय में परिचय बड़ा है! क्या यह स्वराज के लिए उचित होता?’ ’ * प्रत्येक नायक का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह गद््ïदार को सबसे पहले अपनी व्यवस्था से दूर करे, उसे सजा दिलवाए और गद्ïदारी की प्रवृति को पनपने से कठोरता पूर्वक रोके।
546 _aHindi
650 _aMaratha (Indic people)
_vHistory
_xMarathas
_xEthnology
650 _aKings and rulers
_vEmperors
_xHeads of state
_zIndia
650 _aमराठा (इंडिक लोग)
_vइतिहास
_xमानव जाति विज्ञान
650 _aराजा और शासक
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_xराज्य के प्रमुखों
_zभारत
942 _2ddc
_cBK