000 | 03165 a2200169 4500 | ||
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999 |
_c38837 _d38837 |
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020 | _a978- 9355213631 | ||
082 |
_a294.592 _bVIV-V |
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100 |
_aविवेकानंद, स्वामी _eauthor |
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245 |
_aवेदांत: भविषय का धर्म/ _cby स्वामी विवेकानंद |
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260 |
_bप्रभात प्रकाशन: _c2023 _aनई दिल्ली, |
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300 |
_a144p. _e22cm. |
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520 | _aउनतालीस वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।वे केवल संत ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, प्रखर विचारक, रचनाधर्मी लेखक और करुणा से ओतप्रोत मानवताप्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, “नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पड़े झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से ।'' और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। गांधीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानंद के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के भी प्रमुख प्रेरणास्नोत बने । प्रस्तुत पुस्तक 'वेदांत भविष्य का धर्म' में स्वामीजी ने भारतीय अध्यात्म के दो आधारभूत ग्रंथों 'रामायण' और “महाभारत' के माध्यम से भारत के समाज का आध्यात्मिक, सामाजिक और मानसिक दृश्य खींचा है, जो भारतीय जनमानस के भावों का दिग्दर्शन कराता है। | ||
546 | _aHindi | ||
650 |
_aVedanta _vHinduism _xAdvaita _xDvaita (Vedanta) _xMaya (Hinduism) _zIndia |
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650 |
_aवेदान्त _vहिन्दू धर्म _xमाया (हिन्दू धर्म) _xद्वैत (वेदांत) _xअद्वैत _zभारत |
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942 |
_2ddc _cBK |