000 02842 a2200181 4500
999 _c38846
_d38846
020 _a978- 9350486085
082 _a181.45
_bVIV-R
100 _aविवेकानंद, स्वामी
_eauthor
245 _aराजयोग
_cस्वामी विवेकानंद
246 _aRajyog
260 _bप्रभात प्रकाशन,
_c2023
_aनई दिल्ली:
300 _a200p.
_e21cm.
520 _aराजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है। यदि तुम खगोलशास्त्री होने की इच्छा करो और बैठे-बैठे केवल ‘खगोलशास्त्र खगोलशास्त्र’ कहकर चिल्लाते रहो, तो तुम कभी खगोलशास्त्र के अधिकारी न हो सकोगे। रसायनशास्त्र के संबंध में भी ऐसा ही है; उसमें भी एक निर्दिष्ट प्रणाली का अनुसरण करना होगा; प्रयोगशाला में जाकर विभिन्न द्रव्यादि लेने होंगे, उनको एकत्र करना होगा, उन्हें उचित अनुपात में मिलाना होगा, फिर उनको लेकर उनकी परीक्षा करनी होगी, तब कहीं तुम रसायनविज्ञ हो सकोगे। यदि तुम खगोलशास्त्रज्ञ होना चाहते हो, तो तुम्हें वेधशाला में जाकर दूरबीन की सहायता से तारों और ग्रहों का पर्यवेक्षण करके उनके विषय में आलोचना करनी होगी, तभी तुम खगोलशास्त्रज्ञ हो सकोगे।
546 _aHindi
650 _aRaja yoga
_vYoga
_xYoga--Hinduism
_xSamadhi
_xŚivarājayoga
_zIndia
650 _aराजयोग
_vयोग
_xयोग-हिन्दू धर्म
_xसमाधि
_xशिवराजयोग
_zभारत
942 _2ddc
_cBK