000 | 03042 a2200145 4500 | ||
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999 |
_c38852 _d38852 |
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082 | _a211.8 | ||
100 |
_aसिंह, भगत _q Bhagat Singh |
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245 | _aमै नास्तिक क्यों हु ? | ||
246 | _aMain Nastik Kyun Hoon | ||
260 |
_bप्रभात प्रकाशन _c2023 |
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520 | _a[यह लेख भगतसिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार "द पीपल" में प्रकाशित हुआ। इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण, मनुष्य के जन्म, मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता, उसके शोषण, दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है। यह भगतसिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है। स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31 के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में क़द थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगतसिंह की कालकोठरी में पहुंचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, "प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे की तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में भगत सिंह ने यह लेख लिखा। ऐसे ही कई महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह है ये किताब। | ||
650 |
_aAtheism _vReligion _xPhilosophy _zIndia |
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650 |
_a नास्तिकता _v धर्म _xदर्शन _z भारत |
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942 |
_2ddc _cBK |