000 | 03859nam a22001697a 4500 | ||
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999 |
_c38858 _d38858 |
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020 | _a9789355210906 | ||
082 |
_a923.254 _bKUM-A |
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100 |
_aकुमार,अरुणेश _qArunesh Kumar _eAuthor |
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245 |
_aअमर क्रांतिदूत चापेकर बँधु/ _cby अरुणेश कुमार |
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246 | _aAmar krantodoot chapekar bandhu | ||
260 |
_aनई दिल्ली: _bप्रभात प्रकाशन, _c2022. |
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300 |
_a184p. _e21cm. |
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520 | _aचापेकर बंधु--दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण हरी चापेकर तथा वासुदेव हरी चापेकर--तीनों भाइयों को क्रांतित्रयी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चापेकर बंधु पुणे के पास चिंचवड के निवासी थे और बाल गंगाधर तिलक को अपना गुरु मानते थे। आरंभ से ही उनके मन में भारत को विदेशी दासता से मुक्त कराने की दृढ़ भावना थी । सन् 1896 में जब पुणे में प्लेग महामारी फैली तो इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने रैंड नामक एक अधिकारी को तैनात किया । रैंड के गोरे अधिकारी जाँच के नाम पर घर-घर लोगों पर अत्याचार करने लगे। इन अत्याचारों ने चापेकर बंधुओं को अंदर तक आक्रोशित करके रख दिया। उन्होंने रैंड से बदला लेने की ठान ली। एक दिन जब रैंड और उसका साथी एक उत्सव में भाग लेकर लौट रहे थे तो बालकृष्ण ने रैंड के साथी आयस्रट को तथा दामोदर ने रैंड को गोली मारकर दोनों का काम तमाम कर दिया। घर के भेदी द्रविड़ बंधुओं की चुगलखोरी के कारण दामोदर तथा बालकृष्ण को गोरी सरकार ने फाँसी दे दी। इससे क्षुब्ध सबसे छोटे वासुदेव हरी चापेकर ने अपने मित्र महादेव रानाडे की मदद से चुगलखोर द्रविड़ बंधुओं को मार गिराया और खुद भी फाँसी पर चढ़ गया। इस प्रकार अंग्रेजों से लोहा लेकर चापेकर बंधुओं ने जिस शौर्य का प्रदर्शन किया, उसने देशवासियों के मन में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की आग को और तेज करने का काम किया। माँ भारती के सपूतों चापेकर बंधुओं की प्रेरक जीवनगाथा। | ||
650 |
_aRevolutionaries _zIndia _vBiography _xHistory--19th century |
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650 |
_a क्रांतिकारियों _z भारत _vजीवनी _xइतिहास--19वीं सदी |
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942 |
_2ddc _cBK |