000 02747nam a22001217a 4500
999 _c39371
_d39371
020 _a9788126703845
100 _aपुष्पा, मैत्रेयी
245 _aझूला नट
260 _b‎ राजकमल प्रकाशन :
_c©2018
300 _a162p.
520 _aगाँव की साधारण–सी औरत है शीलोµन बहुत सुंदर और न बहुत सुघड़ लगभग अनपढ़µन उसने मनोविज्ञान पढ़ा है, न समाजशास्त्र जानती है । राजनीति और स्त्री–विमर्श की भाषा का भी उसे पता नहीं है । पति उसकी छाया से भागता है । मगर तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा की यह मार न शीलो को कुएँ–बावड़ी की ओर धकेलती है, और न आग लगाकर छुटकारा पाने की ओर । वशीकरण के सारे तीर–तरकश टूट जाने के बाद उसके पास रह जाता है जीने का नि:शब्द संकल्प और श्रम की ताकत एक अडिग धैर्य और स्त्री होने की जिजीविषा उसे लगता है कि उसके हाथ की छठी अंगुली ही उसका भाग्य लिख रही है और उसे ही बदलना होगा । झूला नट की शीलो हिंदी उपन्यास के कुछ न भूले जा सकने वाले चरित्रों में एक है । बेहद आत्मीय, पारिवारिक सहजता के साथ मैत्रेयी ने इस जटिल कहानी की नायिका शीलो और उसकी ‘स्त्री–शक्ति’ को फोकस किया है पता नहीं झूला नट शीलो की कहानी है या बालकिशन की . हाँ, अंत तक, प्रकृति और पुरुष की यह ‘लीला’ एक अप्रत्याशित उदात्त अर्थ में जरूर उद्भासित होने लगती है । निश्चय ही झूला नट हिंदी का एक विशिष्ट लघु–उपन्यास है|
942 _2ddc
_cBK