000 03774nam a22001217a 4500
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020 _a9788126725762
100 _aगर्ग, मृदुला
245 _aमैं और मैं
260 _bराजकमल प्रकाशन,
_c©2016
300 _a240p.
520 _aरचनात्मकता का पल्लवन बेल की तरह आधार चाहता है, भले ही कैसा भी हो बस आकाश की ओर अवलम्बित, जिसके सहारे ऊँचाइयाँ पाई जा सकें । मैं और मैं इन्हीं भटकाते आधारों का अन्तर्द्वन्द्व है । मृदुला गर्ग का यह उपन्यास अपने भीतर के जगत को सच की तपिश से बचाने की प्रवृत्ति को भी रेखांकित करता है, क्योंकि सत्य से साक्षात्कार करें तो भीतर अपराधबोध पनपता है और झूठ में शरण लेने की लालसा––– । मैं और मैं कहानी है मृदुला गर्ग के दो कलात्मक और सशक्त पात्रों–कौशल कुमार और माधवी–के बनते–टूटते सामाजिक और नैतिक आग्रहों की । लेखिका के अनुसार, क्या था माधवी और उसके बीच ? उसके नहीं, माधवी और उसके पति के बीच ? कौशल जैसे प्याले में गिरी मक्खी हो । उसे देखकर वे चीखे नहीं थे, यह उनकी शालीनता थी । मक्खी पड़ा प्याला अलग हटाकर अपने–अपने प्यालों से चाय पीते रहे थे । लग रहा था वे अलग–अलग नहीं, एक ही प्याले से चाय पी रहे हैं और कौशल छटपटाकर बाहर निकल गया है । भिनभिन करके पूरी कोशिश कर रहा है कि उनके सामीप्य में अवरोध पैदा कर दे, पर उसकी भिनभिनाहट उनका मनोरंजन कर रही है, सामीप्य का गठबन्धन और मजबूत कर रही है । जुगुप्सा, वितृष्णा, हिंसा कुछ भी तो नहीं था, जो उसके अस्तित्व–बो/ा को बनाए रखता । एक ओर कौशल का अपने अतीत के लिए समाज को दोषी ठहराना और इस तर्क की बिना पर समाज की भरपूर अवहेलना, वहीं माधवी का समाज की खौफनाक होती शक्ल में अपनी चुप्पी को जिम्मेदार मानना । बाद में कौशल की नजदीकी से वह स्वीकारती है कि सृजन के लिए सब कुछ जायज है, मानवीय रिश्तों का बेहिस्स इस्तेमाल भी––– ।
942 _2ddc
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