हिन्द स्वराज / दिनकर जोशी
By: जोशी, दिनकर [Joshi, Dinkar] [ लेखक [author]].
Publisher: नई दिल्ली : भारतीय ज्ञानपीठ, 2016Edition: 2nd ed.Description: 123p.ISBN: 9789326352901 .Other title: Hind Swaraj.Subject(s): राष्ट्रवाद | भारत | हिंद स्वराज (गांधी, महात्मा) | राजनीति और सरकारDDC classification: 954.035 Summary: महात्मा गाँधी आज भी अपने दर्शन में सर्वस्पर्शी हैं। जनतन्त्र की पहचान भारतीय जन के रूप में गाँधी करते हैं। उनकी दृष्टि में सब नागरिक एक समान हैं। देश और उसका जनतन्त्र भाषा, धर्म, जाति आदि में रहते हुए उससे ऊपर हैं। 'हिन्द स्वराज' की धारणा में उनका दर्शन न्याय, सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों पर भी समान है। गाँधी मताधिकार से लेकर सामाजिक समरसता, आंशिक समानता, शिक्षा का अधिकार और गरीबी उन्मूलन के स्वदेशी उपायों पर विमर्श प्रस्तुत करते हैं। इन सारे बिन्दुओं पर गाँधी आत्मबल के मार्ग को प्राथमिकता देते हैं। इस मार्ग पर यान्त्रिकीकरण के खतरों के प्रति आगाह करते हुए गाँधी इस देश का सम्यक् और विवेकसंगत रोडमैप देश के सामने रखते हैं । दिनकर जोशी आज सर्वाधिक प्रासंगिक 'हिन्द 'स्वराज' की अवधारणा की एक बार पुनः व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। यह किताब इक्कीसवीं सदी के लिए एक ज़रूरी पाठ है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 954.035 JOS-H (Browse shelf) | Available | 53469 |
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954.035 GAN- Gandhi in modern world | 954.035 IND; India's struggle for independence: visuals and documents | 954.035 JAW-S Swami Vivekananda | 954.035 JOS-H हिन्द स्वराज / | 954.035 KIN-M SL1 Mahatma Gandhi and Martin Luther King: Power of nonviolent action | 954.035 MAZ-M Politico-economic ideas of Mahatma Gandhi | 954.035 MIS-G Gandhi and Nehru |
गुजराती से अनुवाद: नवनीत ठाकुर
Includes bibliographical references and index.
महात्मा गाँधी आज भी अपने दर्शन में सर्वस्पर्शी हैं। जनतन्त्र की पहचान भारतीय जन के रूप में गाँधी करते हैं। उनकी दृष्टि में सब नागरिक एक समान हैं। देश और उसका जनतन्त्र भाषा, धर्म, जाति आदि में रहते हुए उससे ऊपर हैं। 'हिन्द स्वराज' की धारणा में उनका दर्शन न्याय, सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों पर भी समान है। गाँधी मताधिकार से लेकर सामाजिक समरसता, आंशिक समानता, शिक्षा का अधिकार और गरीबी उन्मूलन के स्वदेशी उपायों पर विमर्श प्रस्तुत करते हैं। इन सारे बिन्दुओं पर गाँधी आत्मबल के मार्ग को प्राथमिकता देते हैं। इस मार्ग पर यान्त्रिकीकरण के खतरों के प्रति आगाह करते हुए गाँधी इस देश का सम्यक् और विवेकसंगत रोडमैप देश के सामने रखते हैं । दिनकर जोशी आज सर्वाधिक प्रासंगिक 'हिन्द 'स्वराज' की अवधारणा की एक बार पुनः व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। यह किताब इक्कीसवीं सदी के लिए एक ज़रूरी पाठ है।
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